प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति को मिल रहा है वैश्विक मंच

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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आज की दुनिया जहां सजग जीवनशैली, संतुलित यात्रा और समग्र स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होती जा रही है, वहीं, भारत की 5,000 साल पुरानी चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद एक विकल्प नहीं, बल्कि एक जीवनशैली के रूप में उभर रही है. इस बदलाव की अगुवाई कर रहा है एक शांत लेकिन तेज़ी से बढ़ता ट्रेंड– आयुर्वेद टूरिज्म, जो चिकित्सा, संस्कृति, प्रकृति और आत्म-खोज को एक साथ जोड़ता है. महार्षि आयुर्वेद हॉस्पिटल के निदेशक लक्ष्मण श्रीवास्तव के मुताबिक, आयुर्वेद का यह सफर अभी शुरुआत में है. “यह सदी आयुर्वेद को केवल एक उपचार पद्धति नहीं, बल्कि एक प्रिवेंटिव यानी रोकथाम आधारित स्वास्थ्य प्रणाली के रूप में उभारते देखेगी,” वे कहते हैं. “आयुर्वेद ही पहला चिकित्सा विज्ञान था जिसने रोग की रोकथाम को भी इलाज जितना ही जरूरी माना.”

वेलनेस टूरिज्म का हो रहा है विस्तार

दुनिया भर में लोग अब ऐसे स्वास्थ्य समाधान तलाश रहे हैं जो केवल शरीर नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलित करें. इसी सोच के साथ वेलनेस टूरिज्म का विस्तार हो रहा है और आयुर्वेद इसमें सबसे उपयुक्त विकल्प के रूप में उभरा है. लक्ष्मण श्रीवास्तव कहते हैं, “आजकल लोग प्रामाणिक और प्राकृतिक उपचार की ओर लौट रहे हैं. आयुर्वेद की लोकप्रियता इसलिए भी बढ़ी है क्योंकि यह कई अन्य पद्धतियों जैसे नैचुरोपैथी, यूनानी, तिब्बती और चीनी चिकित्सा की भी नींव है.” आयुर्वेदिक पर्यटन को आम वेलनेस रिट्रीट्स से अलग बनाता है इसका दीर्घकालिक दृष्टिकोण. जब दुनिया भर में ऑटोइम्यून रोग, चिंता और पाचन संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं, लोग अब तात्कालिक राहत से आगे बढ़कर स्थायी समाधान की तलाश में हैं.

केवल बीमारी की दवा नहीं देता आयुर्वेद

लक्ष्मण श्रीवास्तव के अनुसार, “आयुर्वेद केवल बीमारी की दवा नहीं देता, यह शरीर, मन और आत्मा तीनों स्तरों पर स्वास्थ्य को संवारता है. यह पहला विज्ञान था जिसने पाचन और मस्तिष्क के बीच संबंध को पहचाना, जिसे आज आधुनिक न्यूरोसाइंस भी मान्यता दे रही है.” पंचकर्म जैसी आयुर्वेदिक विधियां अब भारत आने वाले हजारों विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं. ये थेरेपी न केवल शरीर को डिटॉक्स करती हैं, बल्कि वसा-घुलनशील और जल-घुलनशील दोनों तरह के विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में सक्षम हैं. लक्ष्मण श्रीवास्तव जोड़ते हैं, “आयुर्वेद ने शरीर की लिम्फेटिक और ग्लिम्फेटिक प्रणालियों को सदियों पहले ही समझ लिया था. आधुनिक विज्ञान अब जाकर इन रहस्यों को उजागर कर रहा है.”
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