भारत में मछली उत्पादन 2024–25 में 197.75 लाख टन तक पहुंचा, PMMSY से 38% वृद्धि

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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भारत में मछली उत्पादन 2024–25 में बढ़कर 197.75 लाख टन तक पहुंच गया है. वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) की शुरुआत के बाद से इसमें करीब 38% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है. इससे पहले 2019–20 में देश का कुल मछली उत्पादन 141.60 लाख टन था. सरकार ने बुधवार को यह जानकारी साझा की. लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में मत्स्य पालन, पशुपालन और दुग्ध उत्पादन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने कहा कि यह वृद्धि मुख्य रूप से अंतर्देशीय मत्स्य पालन के विस्तार, समुद्री मत्स्य पालन विकास, मूल्य-श्रृंखला अवसंरचना को मजबूत करने और पीएमएमएसवाई योजना के तहत नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण हुई है.
निर्यात आय में लगभग 33.7% की वृद्धि
उन्होंने आगे कहा कि भारत का मछली और मत्स्य उत्पादों का निर्यात वर्तमान में 62,408.45 करोड़ रुपए का है, जो इस क्षेत्र के मजबूत प्रदर्शन को दर्शाता है. 2020-21 में पीएमएमएसवाई के लागू होने के बाद से निर्यात आय में लगभग 33.7% की वृद्धि हुई है, जो 2019-20 में 46,662.85 करोड़ रुपए से बढ़कर 2024-25 में 62,408.45 करोड़ रुपए हो गई है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पीएमएमएसवाई की शुरुआत से पहले भारत की औसत मत्स्यपालन उत्पादकता लगभग 3 टन प्रति हेक्टेयर थी, जो 2025 की शुरुआत तक बढ़कर लगभग 4.7 टन प्रति हेक्टेयर हो गई है और अंतर्देशीय मछली उत्पादन में शीर्ष 5 राज्य आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा हैं.

कृषि क्षेत्र के कुल जीवीए में मत्स्य पालन की हिस्सेदारी 7%

मत्स्य पालन क्षेत्र का सकल मूल्य वर्धन (GVA) वर्ष 2023–24 में बढ़कर 3,68,124 करोड़ रुपये पहुंच गया, जो 2018–19 में 2,12,087 करोड़ रुपये था. इसी अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र के कुल जीवीए में मत्स्य पालन की हिस्सेदारी 7% से बढ़कर 7.55 प्रतिशत हो गई है. मंत्री ने आगे कहा कि केंद्र सरकार मत्स्य पालन प्रौद्योगिकी, जलीय कृषि और मूल्यवर्धन के क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
इसके लिए सरकार मत्स्य पालन मूल्य श्रृंखला में कई तरह के उपायों का समर्थन कर रही है, जिनमें गुणवत्तापूर्ण मछली उत्पादन, जलीय कृषि का विस्तार, विविधीकरण और गहनता, निर्यात उन्मुख प्रजातियों को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी का समावेश, सुदृढ़ रोग प्रबंधन और पता लगाने की क्षमता, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण, निर्बाध शीत श्रृंखला और प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ आधुनिक कटाईोत्तर अवसंरचना का निर्माण शामिल है.
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