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The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
भारत में एलपीजी की मांग पिछले आठ वर्षों में तेजी से बढ़ी है और FY25 में यह 31.3 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) तक पहुँच गई है. जबकि FY17 में यह 21.6 एमएमटी थी. बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि घरेलू परिवारों द्वारा अधिक संख्या में रिफिल बुक कराने और एलपीजी की बेहतर उपलब्धता के कारण खपत में निरंतर बढ़ोतरी दर्ज की गई है. अनुमान है कि FY26 तक एलपीजी की कुल मांग बढ़कर 33–34 एमएमटी के स्तर तक पहुँच सकती है.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के लाभार्थियों की ओर से भराए जाने वाले औसत घरेलू एलपीजी रिफिल की संख्या FY17 में 3.9 सिलेंडर से बढ़कर FY25 में 4.5 प्रति वर्ष तक पहुंच गई है. इसकी वजह कम दाम, बेहतर डिलीवरी नेटवर्क और रोजाना खाना पकाने की ऊर्जा जरूरतों के लिए एलपीजी पर बढ़ती निर्भरता है. गैर-उज्ज्वला लाभार्थियों की ओर से हर साल 6-7 सिलेंडर प्रति वर्ष भरवाए जा रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों में उपयोग होने वाली एलपीजी की हिस्सेदारी FY17 में कुल खपत के 10% से बढ़कर FY25 में 16% तक पहुँच गई है. इस वृद्धि के पीछे फूड सर्विस सेक्टर, संस्थागत रसोईयों और छोटे विनिर्माण क्लस्टर्स द्वारा LPG के बढ़ते उपयोग को प्रमुख कारण बताया गया है, जिससे मांग का दायरा व्यापक हुआ है. बढ़ती मांग के साथ देश का वार्षिक एलपीजी उत्पादन भी बढ़ा है, जो FY17 के 11.2 MMT से बढ़कर FY25 में 12.8 MMT हो गया है.
रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी एलपीजी मांग को पूरा करने के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है. देश की कुल मांग का 55-60% आयात से पूरी होती है. हाल ही में भारत-अमेरिका के बीच हुए 2.2 मिलियन टन प्रति वर्ष आपूर्ति के LPG समझौते से देश की आपूर्ति में विविधता आने की उम्मीद है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत परंपरागत रूप से LPG आपूर्ति के लिए मध्यपूर्वी देशों पर निर्भर रहा है. हालांकि, यह नई आपूर्ति व्यवस्था रणनीतिक रूप से लाभकारी है, लेकिन फ्रेट लागत में उतार–चढ़ाव के कारण लैंडेड कॉस्ट की संवेदनशीलता भविष्य में तेल विपणन कंपनियों की आर्थिक गणनाओं को प्रभावित कर सकती है.