सफेदपोश एनआरआई का बढ़ता वर्चस्व, भारत को मिल रही आर्थिक ताकत

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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पिछले वर्ष अमेरिका दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय प्रवासियों को संबोधित किया था. उन्होंने था कहा, “दुनिया के लिए AI का मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो सकता है, लेकिन मेरे लिए यह ‘अमेरिकन-इंडियन स्पिरिट’ भी है. यह दुनिया की नई AI शक्ति है.” उस समय अमेरिकी राजनीति और कॉरपोरेट जगत में भारतीय मूल के नेताओं का बढ़ता प्रभाव भी सुर्खियों में था. भारतीय मूल के लोग लंबे समय से सॉफ्ट पावर के रूप में देखे जाते थे, लेकिन अब वे भारत को हार्ड पावर यानी आर्थिक ताकत भी दे रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, अब अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों से भारत में आने वाली विदेशी मुद्रा प्रेषण की हिस्सेदारी खाड़ी देशों से अधिक हो गई है. 2023-24 में भारत को कुल 118.7 बिलियन डॉलर का रेमिटेंस मिला, जो 2010-11 में मिले 55.6 बिलियन डॉलर से दोगुना है.
यह न केवल देश की आर्थिक स्थिरता को मजबूत करता है, बल्कि व्यापार घाटे को भी संतुलित करता है. खाड़ी देशों में भारतीय श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक है, खासकर यूएई, जहां मुख्य रूप से ब्लू-कॉलर यानी श्रम आधारित नौकरियों में भारतीय काम करते हैं. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. RBI के अनुसार, अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भारत को भेजे जाने वाले रेमिटेंस में तेज़ी से वृद्धि हो रही है.
2023-24 में खाड़ी देशों से भारत को कुल 38% रेमिटेंस प्राप्त हुआ. अमेरिका से भारत को सबसे अधिक 27.7% रेमिटेंस मिला. यूएई से आने वाले रेमिटेंस की हिस्सेदारी 19.2% रही. यूएई में भारतीय श्रमिकों की संख्या अधिक होने के बावजूद, अमेरिका से अधिक रेमिटेंस इसलिए आता है क्योंकि वहां भारतीय मुख्य रूप से हाई-स्किल्ड वर्कफोर्स का हिस्सा हैं. 1970 के दशक में खाड़ी देशों में तेल कारोबार के उछाल के कारण भारतीय मजदूरों को विदेशों में रोजगार के अवसर मिले. 1990 के दशक में आईटी क्रांति के बाद भारत के तकनीकी पेशेवरों की मांग अमेरिका और यूरोप में तेजी से बढ़ी. इससे भारत को मिलने वाले रेमिटेंस में बड़ा उछाल आया.
BCG और Indiaspora की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मूल के लोग अमेरिका में आर्थिक और व्यावसायिक रूप से बेहद प्रभावशाली हैं:
अमेरिका में भारतीयों की औसत वार्षिक आय 136,000 डॉलर है, जो वहां की औसत आय से लगभग दोगुनी है.
भारतीय मूल के लोग अमेरिकी आबादी का सिर्फ 1.5% हैं, लेकिन 5-6% टैक्स देते हैं.
अमेरिका के 10 में से 1 डॉक्टर भारतीय मूल का है.
60% अमेरिकी होटल भारतीय प्रवासियों के स्वामित्व में हैं.
सिलिकॉन वैली के लगभग 40% स्टार्टअप्स भारतीयों द्वारा स्थापित किए गए हैं.
पिछले 5 वर्षों में अमेरिका में बने नए यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स में सबसे अधिक भारतीय संस्थापकों के हैं.
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पूर्व छात्र रोहित जैन के अनुसार, भारतीयों की सफलता सिर्फ गणित और विज्ञान में निपुणता तक सीमित नहीं है. भारतीय शिक्षा प्रणाली ने उन्हें वास्तविक जीवन की समस्याओं को हल करने और नेतृत्व करने में सक्षम बनाया है. इसी कारण वे अमेरिका में शीर्ष प्रबंधन भूमिकाओं तक पहुंचे हैं. सिलिकॉन वैली सेंट्रल चैंबर ऑफ कॉमर्स की सीईओ हरबीर भाटिया ने कहा था, “अमेरिका की तकनीकी इंडस्ट्री भारतीयों के बिना नहीं चल सकती.”
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