भारत में टोल कलेक्शन की लागत वित्त वर्ष 2024-25 में सालाना आधार पर 43% घटकर 2,674 करोड़ रुपये रह गई है, जबकि पिछले FY23-24 में यह आंकड़ा 4,736 करोड़ रुपये था. यह जानकारी सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (NHAI) ने गुरुवार को जारी की. मंत्रालय के अनुसार, कुल टोल संग्रह में लागत की हिस्सेदारी भी घटकर 9.27% रह गई है, जो पिछले वित्त वर्ष में 17.27% थी. टोल कलेक्शन की लागत, टोलिंग एजेंसी द्वारा वसूली गई कुल टोल फीस और एनएचएआई को भेजी गई राशि में अंतर को कहा जाता है.
भारत में टोल संग्रह में वृद्धि
FY23-24 में टोल एजेंसियों द्वारा 27,417 करोड़ रुपए का टोल का संग्रह किया गया था. इसमें से 22,681 करोड़ रुपए NHAI को भेजे गए थे. हालांकि, FY24-25 में टोल एजेंसियों ने 28,823 करोड़ रुपए का टोल कलेक्शन किया. इसमें से 26,149 करोड़ रुपए एनएचएआई को भेजे गए. टोल कलेक्शन की लागत में कमी मुख्य रूप से एनएचएआई द्वारा की गई विभिन्न पहलों के कारण हुई, जिसमें वर्तमान कॉन्ट्रैक्ट्स की गहन निगरानी, तीन महीने के कथित विस्तार के प्रावधान को हटाना, समय पर बोली लगाना, यह सुनिश्चित करना कि अधिकतम कॉन्ट्रैक्ट एक वर्ष की अवधि के लिए दिए जाएं और तीन महीने के छोटी अवधि के कॉन्ट्रैक्ट को न्यूनतम करना शामिल हैं.
तीन महीने के छोटे टोल कॉन्ट्रैक्ट्स में कटौती
इसके अलावा, तीन महीने की छोटी अवधि वाले कॉन्ट्रैक्ट्स में भारी कटौती के उपाय किए गए हैं. अब एक वित्तीय वर्ष के दौरान केवल तीन समयपूर्व समाप्ति अनुरोध स्वीकार किए जाएंगे और उसी ठेकेदार को उसी टोल प्लाजा की बोली में भाग लेने से रोका जाएगा, जिसके लिए उसने समयपूर्व समाप्ति अनुरोध किया हो. साथ ही, एनएचएआई ने ऑल इंडिया यूजर फीस कलेक्शन फेडरेशन के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखा, जिससे टोल कलेक्शन एजेंसियों की समस्याओं का त्वरित समाधान किया जा सके और टोल बिड्स में उनकी भागीदारी बढ़ाई जा सके.
मंत्रालय के अनुसार, टोल कलेक्शन एजेंसियों की परफॉर्मेंस सिक्योरिटी (नकद हिस्सा) और बैंक गारंटी समय पर जारी होने से उनकी बोली लगाने की क्षमता में सुधार हुआ, जिसके परिणामस्वरूप बोली की राशि भी बढ़ी.
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