डॉक्टर की लापरवाही से हुई थी महिला की मौत, राज्य उपभोक्ता आयोग ने लगाया इतने लाख का जुर्माना

Shubham Tiwari
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Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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State Consumer Commission: राज्य उपभोक्ता आयोग ने इलाज में लापरवाही बरतने पर श्याम मैटरनिटी एण्ड नर्सिंग होम प्रा०लि० वाराणपीर पर कई लाखों रुपये का जुर्माना लगाया है. आरोप है कि इस नर्सिंग होम के डॉ0 सरोज पाण्डेय और उनके स्टाफ की लापरवाही के कारण एक महिला की मौत हुई थी. इस पूरे मामले पर समस्त तथ्यों को देखते हुए प्रिसाइडिंग जज न्यामूर्ति राजेन्द्र सिंह ने मृतिका के बच्चे के हित को सुरक्षित करते हुए और उसके लालन-पालन व शिक्षा आदि के मद में यह आदेश पारित किया, जिससे कोई कठिनाई नहीं है. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला…

जानिए पूरा मामला

दरअसल, परिवादी विजय बहादुर सिंह की पुत्री प्रिया सिंह उर्फ प्रियंका सिंह का विवाह पंकज सिंह के साथ हुआ था और वह विवाह के पश्चात् जून, 2012 में गर्भवती हुई. 28 जून 2012 को प्रिगनेंसी टैस्ट किया और इसकी पुष्टि हो गयी. इसके बाद वह अपने पिता के पास रहने चली आयी. प्रियंका ने डॉ० सरोज पाण्डेय (एमबीबीएस, डीजीओ), ए-20, गांधी नगर, सिगरा वाराणसी, जो एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, को अपने आप को दिखाया. डॉं के परामर्श के अनुसार कई परीक्षण कराये गये और वह लगातार उनके उपचार में रही.

लापरवाही के कारण हुई मौत

इसके बाद 30 जनवरी 2013 वह नर्सिंग होम में गईं. जहां डॉक्टर सरोज पाण्डेय ने अपने यहां भर्ती कर लिया. लोवर (यूटेरिन) सेगमेण्ट सिजेरियन सेक्सन के माध्यम से आपरेशन किया और फिर उसे प्राइवेट रूम में रखा, जहां पर वह अचेत अवस्था में थी. बार-बार रिक्वेस्ट करने के बाद भी उसकी उचित देखभाल नहीं की गयी. उसकी हालत गम्भीर होने पर परिवादी डॉ० सरोज पाण्डेय के पास गया, उसी परिसर में रहती थीं. उन्होंने स्वयं आ कर अपने स्टाफ को हिदायत दी, लेकिन उचित उपचार न होने के कारण परिवादी की बेटी की मृत्यु 31 जनवरी को हो गयी.

पोस्टमार्टम में हुआ खुलासा

इसके बाद मृतक के परिजनों ने उसी दिन पोस्टमार्टम कराया. जिसमें पाया गया कि कि पेट में अत्यधिक रक्त श्राव हुआ और खून के थक्के बनने के कारण महिला की मौत हुई. इस मामले में मृतक के पिता ने आरोप लगाया कि डॉ० सरोज पाण्डेय एवं उनके स्टाफ की लापरवाही के कारण उनके 25 वर्षीय बेटी की मृत्यु हुई.

परिजनों ने की कार्रवाई की मांग

बताते चले कि प्रिया सिंह को पहली बार 28 जून 2012 को दिखाया गया था और उसके सारे परीक्षण सामान्य थे. इस सिजेरियन सेक्सन में दो तरह की प्रक्रिया होती है. एक यूटेरस पर चीरा लगाया जाता है और दूसरा उस लोवर यूटेरिन सेगमेण्ट सेक्सन में चीरा लगाकर प्रसव कराया जाता है. इस मामले में यह स्पष्ट हुआ कि इस प्रक्रिया के दौरान् डॉ० सरोज पाण्डेय की लापरवाही से मृतिका के पेट में अत्यधिक रक्त श्राव हुआ और खून के थक्के जम गये, जिससे उसकी मृत्यु हुई. तब परिवादी ने श्याम मैटरनिटी एण्ड नर्सिंग होम प्रा०लि0, ए-20, गांधी नगर, सिगरा, वाराणसी एवं डॉ० सरोज पाण्डेय (एमबीबीएस, डीजीओ), ए-20, गांधी नगर, सिगरा वाराणसी के विरूद्ध यह परिवाद राज्य उपभोक्ता आयोग, उ०प्र०, लखनऊ में प्रस्तुत किया, जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के प्रिसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह सदस्य एवं विकास सक्सेना सदस्य द्वारा की गयी.

प्रिसाइडिंग जज ने सुनाया यह फैसला

प्रिसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह ने इस मामले में लोवर (यूटेरिन) सेगमेण्ट सिजेरियन सेक्सन के सम्बन्ध में विस्तृत विचार किया और साथ ही साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखा. जहां पर मृतिका के पेट में अत्यधिक खून और खून के थक्के मौजूद थे, जो यह दर्शाते थे कि इस मामले में गम्भीर चिकित्सीय उपेक्षा बरती गयी है. विपक्षी ने मृत्यु आख्या में यह दिखाया कि आपरेशन के पश्चात् कोई जटिलता उत्पन्न नहीं हुई और मरीज को श्वास लेने में दिक्कत थी और उसकी मृत्यु कार्डियो रेसपाइरेटरी अरैस्ट से हुई जो वर्तमान परिस्थितियों में अविश्वसनीय है. इस मामले में इलाज से सम्बन्धित सारे अभिलेख/पर्चे परिवादी को प्रदान नहीं किये गये, जैसा कि मेडिकल काउन्सिल आफ इण्डिया के नियमों में कहा गया है. मा० उच्च न्यायालय, इलाहाबद ने भी यह कहा है कि इलाज से सम्बन्धित सारे अभिलेख मांगने पर रोगी को या उसके परिजनों को बाकायदा प्राप्त कराये जायेंगे और उसकी प्राप्ति ली जायेगी, जो इस मामले में नहीं है.

डॉक्टर की लापरवाही का प्रत्यक्ष प्रमाण

इस मामले में प्रिसाइडिंग जज ने पाया कि पैक्ड सेल वॉल्यूम निर्धारित मात्रा से काफी कम था, लेकिन उसके बारे में कोई विचार नहीं किया गया, जबकि पी०सी०वी० टैस्ट एनीमिया, पालीसाईथीमिया, डिहाड्रेशन आदि के सम्बन्ध में लाल रक्त कणिकाओं के घनत्व से नापकर किया जाता है, जो यहाँ नहीं किया गया. इस मामले में यह भी पाया गया कि आपरेशन के बाद पोस्ट आपरेशन मैनेजमेण्ट निम्न स्तर का था. तत्काल अस्पताल और डॉक्टर यह जान ही नहीं सके कि मरीज को क्या शिकायत थी और एक ही दिन के अन्दर उसकी मृत्यु हो गयी, जो अस्पताल के डॉक्टर की लापरवाही का प्रत्यक्ष प्रमाण है.

प्रिसाइडिंग राजेन्द्र सिंह ने विभिन्न न्यायिक दृष्टान्तों का सन्दर्भ लेते हुए और यह देखते हुए कि मृतिका को एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी और इस समय वह लगभग 10 वर्ष का होगा. उसके रख-रखाव और जीवन की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखते हुए विपक्षीगण के विरूद्ध अपने 141 पृष्ठ के निर्णय में निम्नलिखित आदेश पारित किया.

1. विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया गया कि वे परिवादी को चिकित्सीय व्यय के रूप में 50,000/- रू0 मय 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के दिनांक 01-02-2013 (मृत्यु के अगले दिन से) से इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी.

2. विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया गया कि वे परिवादी को चिकित्सीय उपेक्षा और सेवा में कमी के सम्बन्ध में 30.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 01-02-2013 से (मृत्यु के अगले दिन से) 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी. इस धनराशि की आधी धनराशि किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में 10 वर्ष के लिए जमा की जायेगी, जो मृतिका के पुत्र के वयस्क होने पर उसे प्राप्त करायी जायेगी, जो उसकी शिक्षा और रख-रखाव में खर्च की जायेगी.

3. विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया गया कि वे परिवादी को मानसिक यन्त्रणा और अवसाद के मद में 10.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 01-02-2013 से (मृत्यु के अगले दिन से) 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी.

4. विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया गया कि वे परिवादी को 30.00 लाख रू० और इस पर दिनांक 01-02-2013 से (मृत्यु के अगले दिन से) 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी. इस धनराशि की आधी धनराशि किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में 10 वर्ष के लिए जमा की जायेगी, जो मृतिका के पुत्र के वयस्क होने पर उसे प्राप्त करायी जायेगी, जो उसकी शिक्षा और रख-रखावमें खर्च की जायेगी.

5. विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया गया कि वे परिवादी को चिकित्सीय उपेक्षा और सेवा में कमी के सम्बन्ध में 30.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 01-02-2013 से (मृत्यु के अगले दिन से) 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें अन्यथा ब्याज की दर 15 प्रतिशत वार्षिक होगी.

यह धनराशि मृतिका के बच्चे के रख-रखाव, उसके अपनी माँ के स्नेट से वंचित होने के मद में दी जायेगी और यह धनराशि किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में मासिक आय स्कीम के अन्तर्गत अवयस्क पुत्र के नैसर्गित संरक्षक के माध्यम से 10 वर्ष के लिए जमा की जायेगी, जिसका ब्याज प्रतिमाह देय होगा, जो बच्चे के लिए खर्च किया जायेगा. 10 वर्ष पश्चात् मिलने वाली सम्पूर्ण धनराशि को पुनः 10 वर्ष के लिए मासिक आय स्कीम योजना में जमा किया जायेगा, जिसके ब्याज को बच्चे की शिक्षा, रख-रखाव व अन्य खर्चों में प्रयोग किया जायेगा और फिर इस 10 वर्ष के पश्चात् परिपक्व होने पर सम्पूर्ण धनराशि मृतिका के पुत्र को प्रदान की जायेगी, जो मृतिका के पुत्र के वयस्क होने पर उसे प्राप्त करायी जायेगी, जो उसकी शिक्षा और रख-रखाव में खर्च की जायेगी.

6. विपक्षीगण को संयुक्त एवं पृथक-पृथक रूप से आदेश दिया गया कि वे परिवादी को 50,000/- रू० वाद व्यय के रूप में इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर अदा करें.

 

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