Tulsi Puja On Kartik Month: कार्तिक मास में इस स्त्रोत से करें मां तुलसी की पूजा, कभी नहीं होगी धन की कमी

Shubham Tiwari
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Sub Editor The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Tulsi Puja On Kartik Month: 29 अक्टूबर दिन रविवार से कार्तिक महीने की शुरुआत हो गई है. कार्तिक मास में धर्म कर्म के कार्य बढ़ जाते हैं. इस महीने तुलसी पूजा का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि कार्तिक महीने में तुलसी माता की पूजा करने से भगवान श्रीहरि विष्णु के साथ मां लक्ष्मी का विशेष आशीर्वाद मिलता है और हमारे जीवन में कभी रुपये पैसे की कमी नहीं होती है. ऐसे में आइए जानते हैं कार्तिक माह में किस विधि और मंत्र से तुलसी माता की पूजा करना शुभ माना जाता है.

इस तरह करें मां तुलसी की पूजा
ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक कार्तिक माह में तुलसी वृक्ष पर जल देना बहुत शुभ होता है. इस पूरे महीने सुबह जल्दी उठ कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं और साफ वस्त्र धारण कर लें. इसके बाद जहां तुलसी रखीं हों वहां भगवान श्रीहरि विष्णु की प्रतिमा रखें. इसके बाद आसन लगा कर बैठ जाएं. फिर जल छिड़क कर तुलसी माता और भगवान विष्णु को स्नान कराएं, फिर विधि-विधान से पूजा करें. इस दौरान धूप और गाय के घी का दीपक जलाएं. इसके बाद तुलसी स्तोत्रम का पाठ करें. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति कार्तिक माह में प्रतिदिन सुबह उठकर माता तुलसी की विधि विधान से पूजा करते हुए तुलसी स्त्रोंत का पाठ करता है, उसके जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है.

श्री तुलसी स्तोत्रम्‌
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे ।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥१॥
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे ।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥२॥

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥३॥

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥४॥

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥५॥

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥६॥

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥७॥

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥८॥

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥९॥

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥१०॥

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥११॥

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥१२॥

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥१३॥

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥१४॥

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥१५॥
॥ श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

पाठ पूरा होने के बाद आरती करें और मां तुलसी और भगवान विष्णु को भोग लगाएं. इस भोग को परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद के रूप में वितरण करें.

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(Disclaimer: इस लेख में दी गई सामान्य मान्यताओं और ज्योतिष गणनाओं पर आधारित है. The Printlines इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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