78th Cannes Film Festival: विश्व सिनेमा में ईरानी फिल्मों की वापसी

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मशहूर ईरानी फिल्मकार जफल पनाही की फिल्म ‘ इट वाज जस्ट ऐन एक्सीडेंट ‘ को 78वें कान फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म का पाल्मा डोर पुरस्कार मिलने के बाद एक बार फिर से विश्व सिनेमा में ईरानी फिल्मों की वापसी संभव हुई है. इससे ठीक पहले पिछले साल 77वें कान फिल्म समारोह में ईरान के हीं मोहम्मद रसूलौफ की फिल्म ‘ द सीड आफ द सैक्रेड फीड ‘ मुख्य प्रतियोगिता खंड में दिखाई गई और इसे स्पेशल जूरी प्राइज मिला था. इतना ही नहीं इस फिल्म को जर्मनी ने अपने देश से आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में आस्कर अवार्ड के लिए भेजा था और यह फिल्म शार्ट लिस्ट भी हुई थी. जफर पनाही की हीं तरह मोहम्मद रसूलौफ भी कई बार ईरान में जेल जा चुके हैं. इस बार जैसे ही उनकी फिल्म 77वें कान फिल्म समारोह के लिए चुनी गई उन्हें ईरानी सरकार ने आठ साल की सजा सुनाई. वे फिल्म के साथ ईरान से भागने में सफल हुए और जर्मनी में शरण ली.
उन्होंने पुरस्कार समारोह में मंच से अपने पलायन की घोषणा की. यह फिल्म ईरान में हाल ही में हुए हिजाब आंदोलन की पृष्ठभूमि में एक राजनीतिक थ्रिलर है. जफर पनाही की फिल्म ‘ इट वाज जस्ट ऐन एक्सीडेंट ‘ में एघबाल नाम के एक आदमी की कार रात में सड़क पर एक कुत्ते से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है. कुत्ता मर जाता है. वह कार को ठीक कराने पास के एक गैराज में ले जाता है, जिसका मालिक वहीद है. वहां का कार मैकेनिक वहीद को लगता है कि इसका चेहरा उस आफिसर से मिलता है जिसने जेल में वहीद को बुरी तरह प्रताड़ित किया था, जिससे उसकी अच्छी भली जिंदगी बर्बाद हो गई थी. उससे बदला लेने के लिए वह उसका अपहरण कर लेता है और उसे जिंदा जलाने की योजना बनाता है. पर उसे संदेह होता है कि यह कहीं दूसरा आदमी तो नहीं है. उस आदमी की पहचान पुख्ता करने के लिए वहीद अपने साथी कैदियों – एक बुक सेलर सालार और एक शादियों में फोटो खींचने वाली लड़की शिवा को बुलाता है.
शिवा के साथ दुल्हा अली और उसकी दुल्हन गोली भी साथ आ जाते हैं. एक गुस्सैल मजदूर हामिद भी आ जाता है. वाहिद की वैन में ये सभी दिन रात तेहरान की सड़कों पर एक ऐसी जगह की तलाश में घूम रहे हैं, जहां वे उस आफिसर से अपने अपमान और प्रताड़ना का बदला ले सकें. इस दौरान कई नाटकीय घटनाएं घटती हैं. मसलन वैन में बेहोश एघबाल का फोन बजता है. वाहिद जब फोन उठाता है, तो उधर से रोती हुई एक बच्ची बोलती है कि ‘पापा जल्दी घर आ जाओ मम्मी मर जाएगी. अब ये सभी एघबाल के घर जाकर उसकी गर्भवती पत्नी को अस्पताल ले जाते हैं जहां वह एक बच्चे को जन्म देती है. डाक्टर और नर्स के कहने पर वाहिद मिठाई का डब्बा खरीद लाता है और सबको मिठाई बांटता है. वहां से निकलकर वे शहर से बाहर एक निर्जन स्थान पर पहुंचते हैं. इस दौरान सभी हत्या की नैतिकता पर लगातार बहस भी कर रहे हैं.
वाहिद एघबाल को वैन से उतारकर एक पेड़ से बांध देता है और बारी-बारी से सभी उसे याद दिलाते हैं कि कैसे उसने उन्हें और निरीह कैदियों को जेल में निर्दयता से प्रताड़ित किया था. पूरी फिल्म बदले की भावना से शुरू होकर अंत में करुणा और क्षमा तक की यात्रा करती है. वाहिद एघाल के बंधे हाथ खोल कर कहता है कि उसकी पत्नी और नवजात बच्चा सुरक्षित है. यहां से पंद्रह मिनट चलने पर मुख्य सड़क आ जाएगी। वह घर जा सकता है. इस पटकथा के भीतर कई राजनीतिक टिप्पणियां है, जो आज के ईरान का हाल बताती हैं. जफर पनाही के सिनेमा का अपना एक व्याकरण होता है, जिसमें हर चीज बड़ी सरलता और सहजता से घटित होती है. वे वैसे भी कम से कम सेट और प्रापर्टी का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन उनका सिनेमा बहुत गहरा असर छोड़ता है. जफर पनाही ने ईरान में लड़कियों के फुटबॉल मैच देखने पर मनाही को लेकर एक मार्मिक फिल्म 2006 में बनाई थी-‘ आफ साइड.’ इस फिल्म को ईरान में प्रतिबंधित कर दिया गया था.
बाद में बारह साल बाद 2018 में ईरान सरकार ने लड़कियों को फुटबॉल मैच देखने की आजादी दी. जफर पनाही ने इस घटना के बारह साल पहले यह सपना देखा और इस पर फिल्म बनाई. जफर पनाही के अलावा ईरान के अब्बास किरोस्तामी और असगर फरहदी को भी कान फिल्म समारोह में काफी महत्व मिलता रहा है. असगर फरहदी को पांच वर्ष के भीतर हीं दो दो बार आस्कर पुरस्कार मिला. पहली बार ‘ सेपरेशन ‘(2010) और दूसरी बार ‘ सेल्समैन ‘(2015) के लिए. 78वें कान फिल्म समारोह में इस बार मुख्य प्रतियोगिता खंड में ही ईरान के सईद रौसताई की फिल्म ‘ मदर एंड चाइल्ड ‘ भी दिखाई गई. यह एक विकट पारिवारिक ड्रामा है, जिसमें एक विधवा मां और उसके इकलौते बेटे के बीच के भावनात्मक रिश्ते को दिखाया गया है. एक चालीस साल की विधवा नर्स अपने बिगड़ैल और विद्रोही स्वभाव के पंद्रह साल के बेटे आलियार से जूझ रही है.
आलियार को अनुशासनहीनता के कारण स्कूल से निकाल दिया गया है. अचानक एक दुर्घटना घटती है और मेहनाज का इकलौता बेटा आलियार मर जाता है. एक हंसते खेलते बच्चे का इस तरह मरना एक हृदयविदारक दृश्य है. उधर उसका प्रेमी हामिद जिससे वह शादी करने की योजना बना रही है, उसकी सुंदर बहन पर फिदा हो जाता है और शादी भी कर लेता है. हामिद भी मेहनाज के अस्पताल में एंबुलेंस चलाता है. उसकी बहन हामिद के बच्चे की मां बनने वाली हैं. मेहनाज पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है. सब तरफ से उसे धोखा मिलता है. इसके बावजूद वह अपने बच्चे की दर्दनाक मौत के लिए इंसाफ की जंग लड़ती है. कई उतार चढ़ाव के बाद अंततः वह अपनी छोटी बहन के बच्चे में हीं अपने बच्चे आलियार का अक्स देखती है.
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