इजरायल हमास युद्ध के बीच मानवीय कहानियों का सिनेमाई दस्तावेज है फिल्म ‘द टीचर’

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Entertainment News: फिलिस्तीनी मूल की ब्रिटिश महिला फिल्मकार फराह नाबुल्सी की पहली हीं फिल्म ‘द टीचर’ इन दिनों सारी दुनिया में चर्चा में हैं. इसमें टीचर की भूमिका निभाने वाले इजरायली अभिनेता सालेह बकरी ने अपने जबरदस्त अभिनय से सबका ध्यान खींचा है. वे मशहूर अभिनेता मोहम्मद बकरी के बेटे हैं. यह फिल्म इजरायल हमास युद्ध के बीच कई हृदयविदारक मानवीय प्रसंगों को सामने लाती है.

इजिप्ट के अल गूना फिल्म फेस्टिवल में एक विशेष खंड ‘फिलिस्तीन की ओर खिड़की’ नाम से आयोजित किया गया है. इस खंड में करीब दस ऐसी फिल्में और डाक्यूमेंट्री दिखाई जा रही है जो दुनिया भर के सामने फिलिस्तीन का पक्ष रखती हैं. इस खंड की सबसे चर्चित फिल्म है फिलिस्तीनी मूल की ब्रिटिश महिला निर्देशक फराह नाबुल्सी की पहली फिल्म – ‘द टीचर’ जिसे हाल ही में सऊदी अरब के जेद्दा में आयोजित तीसरे रेड सी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में दो दो पुरस्कार मिला है. ऐसा इजरायल हमास युद्ध में फिलिस्तीनी नागरिकों के प्रति पक्षधरता और समर्थन के लिए किया गया है. इस युद्ध की वजह से यह फिल्म समारोह दो दो बार स्थगित हो चुका है. अल गूना फिल्म फेस्टिवल करने वाले ईसाई उद्योगपति बंधुओं (समीर और नगीब साविरिस) ने गाजा में पिछले दिनों पांच बिलियन इजिप्शियन पाउंड की मानवीय सहायता दी है.

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एक फिलिस्तीनी स्कूल टीचर बासेम अल सालेह ( सालेह बकरी) की इस मार्मिक कहानी में एक साथ कई मुद्दे घुल मिल गए हैं. इसमें वेस्ट बैंक में इजरायली सेना की बंदूकों के साए में जी रहे फिलिस्तीनी नागरिकों की सामूहिक पीड़ा में टीचर की अपनी यादों का जहर मिला हुआ है. उसका जीवन तब बिखरने लगता है जब उसके अपने बेटे को एक दुर्घटना में आठ साल की जेल हो जाती है और उसकी पत्नी इस घटना से दुखी होकर घर छोड़कर हमेशा के लिए चली जाती है. एक रात तत्काल इलाज न मिल पाने के कारण दस साल का उसका बेटा जेल में ही मर जाता है. अपने बेटे को नहीं बचा पाने का अपराधबोध लिए वह टीचर दिन रात इमानदारी से अपना काम कर रहा है. वह धीरे-धीरे अपने दो छात्रों, आदम और याकूब में अपने बेटे की छवियां देखने लगता है. एक दोपहर इजरायली सेना की एक टुकड़ी याकूब के घर को तलाशी के दौरान बुलडोजर से ढाह देती है. इससे याकूब विद्रोही बन जाता है. एक दिन अचानक मामूली झगड़े में एक यहूदी उसे सबके सामने गोली मार देता है. उसपर हत्या का मुकदमा तो चलता है पर सब नाटक है. वह हत्यारा बरी हो जाता है.

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टीचर आदम को अपने घर लाता है जो दिन-रात याकूब की हत्या का बदला लेने की सोचता रहता है. टीचर और आदम में एक तरह से बाप बेटे का रिश्ता बनने लगता है. उधर एक फिलिस्तीनी विद्रोही ग्रूप की कैद में एक अमेरिकी राजनयिक का इकलौता बेटा तीन साल से बंधक है जिसे छुड़ाने के लिए उसके लाचार मां बाप इजरायली अफसरों से गुहार लगा रहे हैं. उनका बेटा इजरायली सेना में कमांडर है. उसके बदले इजरायल से करीब एक हजार फिलिस्तीनी कैदियों की रिहाई की मांग की जाती है. इजरायल इस मांग को पूरा करने में इसलिए हिचक रहा है कि एक बार मांग मान लेने पर फिलिस्तीनी विद्रोही गूट को बार बार इजरायलियों का अपहरण करने का प्रोत्साहन मिलेगा. एक रात वे उस बंधक को टीचर के घर लाते हैं और तहखाने में छुपा देते हैं. अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद उस बंधक की खोज में इजरायली सेना इलाके में घर घर छापेमारी कर रही है.

एक ब्रिटिश सोशल वर्कर लिजा टीचर के संपर्क में आती है और उससे प्यार करने लगती है. दोनों अपने सुंदर क्षणों में बहुत कुछ साझा करते हैं और आतंक और खौफ के साए में मशहूर फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश की कविताएं पढ़ते हैं. लेकिन टीचर जानता है कि उसका जीवन जिस मकाम पर हैं, वह अब प्रेम और विवाह नहीं कर सकता. वह लिजा से कहता भी है कि वह न तो अपनी पत्नी को खुश रख सका और न ही अपने बेटे को बचा सका तो वह एक और जिंदगी नहीं बर्बाद कर सकता. लिजा टीचर को उसके अपराध बोध से मुक्त करने की लगातार असफल कोशिश करती रहती है. उधर खबर आती है कि इजरायल अमेरिकी कमांडर के बदले एक हजार फिलिस्तीनी कैदियों को छोड़ने पर राजी हो गया है. इसी बीच आदम टेबुल पर एक नोट लिखकर उस यहुदी की हत्या करने निकल पड़ता है जिसने उसके भाई याकूब को गोली मारी थी. टीचर को लगता है कि वह अपने बेटे को नहीं बचा पाया था पर आदम को बचाना होगा. जैसे ही आदम उस यहुदी पर चाकू से वार करनेवाला है कि अचानक टीचर उसे गोली मार देता है और आदम से भाग जाने को कहता है. टीचर पुलिस के सामने सरेंडर कर जेल चला जाता है.

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