बहरेपन के इलाज में बड़ी कामयाबी: नई जीन थेरेपी से सुनने की क्षमता में सुधार

Divya Rai
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Content Writer The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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New Gene Therapy: वैज्ञानिकों ने एक नई जीन थेरेपी विकसित की है, जो जन्मजात बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से जूझ रहे बच्चों और वयस्कों के लिए वरदान साबित हो सकती है. स्वीडन और चीन के शोधकर्ताओं की एक टीम ने इस थेरेपी का सफल परीक्षण किया, जिससे 10 मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ. यह अध्ययन ‘नेचर मेडिसिन’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है.

कैसे काम करता है जीन थेरेपी

इस शोध में 1 से 24 साल की उम्र के 10 मरीजों को शामिल किया गया, जो चीन के पांच अस्पतालों में भर्ती थे. ये मरीज ओटीओएफ जीन में म्यूटेशन के कारण बहरापन या गंभीर सुनने की समस्या से पीड़ित थे. यह म्यूटेशन ओटोफेर्लिन प्रोटीन की कमी का कारण बनता है, जो कान से दिमाग तक ध्वनि संकेत भेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. जीन थेरेपी में कान के अंदरूनी हिस्से में एक खास तरह के सिंथेटिक वायरस (एएवी) का इस्तेमाल करके ओटोएफ जीन का एक वर्किंग वर्जन पहुंचाया गया. यह एक ही इंजेक्शन के जरिए कोक्लिया (कान का एक हिस्सा) के आधार पर मौजूद एक झिल्ली (जिसे राउंड विंडो कहते हैं) से दिया गया.

ज्यादातर मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार

इस थेरेपी का असर तेजी से दिखा. मात्र एक महीने में ज्यादातर मरीजों की सुनने की क्षमता में सुधार हुआ. छह महीने बाद हुए फॉलो-अप में सभी मरीजों में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई. औसतन, मरीज 106 डेसिबल की ध्वनि को सुनने में सक्षम थे, जो पहले की तुलना में 52 डेसिबल तक बेहतर हो गया. खास तौर पर 5 से 8 साल के बच्चों में यह थेरेपी सबसे ज्यादा प्रभावी रही. सात साल की एक बच्ची ने चार महीने में लगभग पूरी सुनने की क्षमता हासिल कर ली और वह अपनी मां के साथ रोजमर्रा की बातचीत करने लगी. वयस्क मरीजों में भी यह थेरेपी कारगर साबित हुई.

बहरेपन के जेनेटिक इलाज में एक बड़ा कदम

स्वीडन के कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ माओली दुआन ने बताया, “यह बहरेपन के जेनेटिक इलाज में एक बड़ा कदम है. यह मरीजों की जिंदगी को बदल सकता है. हम अब इन मरीजों की निगरानी करेंगे ताकि यह पता चल सके कि यह प्रभाव कितने समय तक रहता है.” इस थेरेपी को सुरक्षित और अच्छी तरह सहन करने योग्य पाया गया. यह सफलता बहरापन के इलाज में नई उम्मीद जगाती है.

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