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भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) में आयोजित 11वें जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर मेमोरियल लॉ लेक्चर (11th Justice V.R. Krishna Iyer Memorial Law Lecture) को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि देश के एक महानतम न्यायविद की विचारधारा का उत्सव है. सीजेआईने कहा कि जब वह 1981 में कानून के छात्र थे, तब नागपुर में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (Dr. Babasaheb Ambedkar) की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्हें पहली बार न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर से मिलने का सौभाग्य मिला था तब से ही वे उनकी सोच और दृष्टिकोण से प्रेरित हैं.
संवेदनशील विचारक थे कृष्णा अय्यर
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, कृष्णा अय्यर केवल न्यायाधीश नहीं थे, वे संवेदनशील विचारक थे. उनकी न्यायिक सोच में संवेदना, करुणा और समाज के प्रति गहरी प्रतिबद्धता थी. उन्होंने हमेशा संविधान को एक सामाजिक परिवर्तन का माध्यम माना. उन्होंने बताया कि अपने करियर में कई बार उन्होंने अय्यर के निर्णयों का सहारा लिया, विशेषकर जब बात समाज के वंचित वर्गों की होती थी. उन्होंने कहा, “मैंने अय्यर साहब के फैसलों को न सिर्फ पढ़ा, बल्कि उन्हें अपने फैसलों का आधार भी बनाया.”
सबके लिए बराबर है कानून
मुख्य न्यायाधीश ने एक अहम केस का जिक्र किया जिसमें उन्होंने सड़क विक्रेताओं के अधिकारों की रक्षा की थी. इस केस में उन्होंने अय्यर के सिद्धांतों को अपनाते हुए कहा कि कानून सबके लिए बराबर है, लेकिन समाज के कमजोर वर्गों के लिए राज्य को विशेष कदम उठाने चाहिए. मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि कैसे अय्यर ने मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बीच संतुलन स्थापित कियाय उन्होंने कहा, “अय्यर साहब ने यह बताया कि संविधान के ये दोनों हिस्से विरोधी नहीं बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं.”
कई ऐतिहासिक फैसलों का भी किया जिक्र
मुख्य न्यायाधीश ने कई ऐतिहासिक फैसलों का भी ज़िक्र किया. जिनमें अय्यर ने मानवाधिकारों को प्राथमिकता दी. उन्होंने बताया कि अय्यर ने मृत्यु दंड के खिलाफ रुख अपनाया और जेल में कैदियों के अधिकारों की पैरवी की. उन्होंने कहा, “अय्यर साहब का मानना था कि जेल में बंद लोगों को भी सम्मान और इंसानियत मिलनी चाहिए.”गवई ने बताया कि कैसे अय्यर ने महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिए ऐतिहासिक निर्णय दिए. मुथम्मा केस और एयर इंडिया केस में उन्होंने महिलाओं को समान अधिकार दिलाए. सीजेआई गवई ने कहा, “कृष्णा अय्यर साहब ने बताया कि कानून केवल किताबों तक सीमित नहीं है, वह ज़मीनी हकीकत से जुड़ा होना चाहिए.” उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज जब कोई न्यायालय तकनीकी पक्ष छोड़कर न्याय को प्राथमिकता देता है, तो वह अय्यर साहब की सोच को जीवित करता है.
न्याय केवल अदालतों में नहीं, समाज में भी दिखना चाहिए
अंत में उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानता कि मैं न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के मार्ग पर कितना चला हूं, लेकिन उनका दृष्टिकोण हमेशा मेरे साथ रहा है. उनकी सोच हमें यह सिखाती है कि न्याय केवल अदालतों में नहीं, समाज में भी दिखना चाहिए. हर बार जब कोई अदालत किसी गरीब के हक में फैसला देती है, तो हम अय्यर साहब की विरासत को जीते हैं.” यह भाषण न्यायपालिका में सामाजिक न्याय, संवेदना और समानता के महत्व को एक बार फिर उजागर करता है.