Minesweeper Ships: भारत समुद्र में चीन की ताकत को देखते हुए माइनस्वीपर योजना पर काम करने का प्लान बनाया है. भारत दुश्मन देशों द्वारा बिछाई गई पानी के नीचे की बारुदी सुरंगों को ढूंढने, ट्रैक करने और नष्ट करने के लिए 12 विशेष युद्धपोत बनाएगा. माइनस्वीपर जहाज बंदरगाहों और समुद्री व्यापार को सुरक्षित रखने में मदद करेंगे.
भारत ने रक्षा तैयारियां की तेज
चीन और पाकिस्तान भारत के खिलाफ नापाक साजिश रचते रहते हैं. हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष में चीन और तुर्की खुलकर आतंकी देश के पक्ष में आ गए थे. दुनिया के अधिकतर देश इस मामले में तटस्थ ही बने रहे और फ्रांस-इजरायल के अलावा किसी भी देश ने भारत का खुलकर साथ नहीं दिया. ऐसे में भारत के सामने खुद अपनी रक्षा तैयारियों को तेज करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है.
44 हजार करोड़ का बजट
माइनस्वीपर शिप पर फिर से काम करने में लगभग 44 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे. कुल 12 माइनस्वीपर जहाज भारत में ही बनाए जाएंगे. फिलहाल भारत के पास ऐसा कोई जहाज नहीं है, क्योंकि पुराने माइनस्वीपर कई साल पहले ही रिटायर कर दिए गए थे.
रक्षा खरीद परिषद में रखा जाएगा प्रस्ताव
इस योजना को अब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद के सामने मंजूरी के लिए पेश किया जाएगा. मंजूरी मिलने के बाद भारतीय शिपयार्ड्स से जहाज बनाने के लिए टेंडर मांगे जाएंगे. यह फैसला पाकिस्तान और चीन की बढ़ती समुद्री गतिविधियों के बीच भारत की नौसेना को और मजबूत करने के लिए लिया गया है.
क्या काम करते हैं माइनस्वीपर जहाज?
माइनस्वीपर जहाजों को समुद्री मार्गों से बारूदी सुरंगों को हटाने के लिए बनाया जाता है. युद्ध के दौरान ये सुरंग समुद्र में बड़ी तबाही लाते हैं. ये जहाज दुश्मनों द्वारा समुद्र में छुपाकर रखी गई माइन्स यानी बारूदी सुरंगों को ट्रैक करते हैं और उन्हें नष्ट करते हैं, ताकि बंदरगाहों और व्यापारिक जहाजों को कोई हानि न हो. इससे युद्धपोतों और व्यापारिक जहाजों के लिए सुरक्षित मार्ग बनता है.
इसके दो अहम सामरिक कार्य
नौसैनिक युद्ध में माइनस्वीपर्स के दो अहम सामरिक कार्य होते हैं: पहला, माइनस्वीपिंग करने वाले देश के युद्धपोतों और व्यापारी जहाजों की सुरक्षा के लिए समुद्री मार्गों से बारूदी सुरंगों को हटाना. दूसरा, बारूदी सुरंगों के बीच से रास्ता साफ करना ताकि दूसरे युद्धपोत युद्ध में शामिल हो सकें या जल-थल में उतर सकें, जैसा कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रशांत क्षेत्र में हुआ था. युद्ध समाप्त होने के बाद भी माइनस्वीपर्स की उतनी ही आवश्यकता हो सकती है.
यह कैसे काम करता है?
माइनस्वीपर एक स्टील के केबल से सुरंगों को समुद्र से बाहर निकालता है, जैसे ही केबल टूटती है, माइन मुक्त होकर सतह पर आ जाती है. फिर इसे तोप से फायर करके नष्ट कर दिया जाता है. इसे “ओरोपेसा” तकनीक कहते हैं. माइनस्वीपर्स में एक इलेक्ट्रिकल सिस्टम भी होता है, जिसका इस्तेमाल चुंबकीय माइन्स को धमाके से बचाने के लिए उनके चुंबकीय क्षेत्र को कम करने के लिए होता है.
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