Nuclear Medicine: परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) अब विशाखापत्तनम में एक विशेष परमाणु रिएक्टर स्थापित करेगा, जिससे भारत में कैंसर का इलाज काफी सस्ते में किया जा सकेगा. दरअसल, ये कैंसर के इलाज और मेडिकल उपयोग के लिए आवश्यक रेडियोआइसोटोप्स तैयार करेगा. भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इसका उद्देश्य भारत को रेडियोआइसोटोप्स के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना और कैंसर इलाज को सस्ता करना है.
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के अधिकारी के मुताबिक, इसे अगले चार से पांच वर्षों के अंदर सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के तहत स्थापित किया जाएगा. यह भारत का पहला रिएक्टर होगा जो पूरी तरह से कैंसर और अन्य बीमारियों के निदान और उपचार में उपयोग किए जाने वाले चिकित्सा आइसोटोप के उत्पादन के लिए समर्पित होगा.
मेडिकल परमाणु रिएक्टर के लिए मिली मंजूरी
उन्होंने बताया कि इस रिएक्टर के लिए मंजूरी मिल गई है, अब बस वित्तीय स्वीकृति का इंतजार है. अधिकारी ने बताया कि यह सरकारी और निजी साझेदारी के तहत पूरी की जाने वाली पीपीपी पहल है, इसलिए निजी क्षेत्र के निवेशक भी भागीदार बनेंगे. उनके पास निवेश करने रेडियोआइसोटोप बेचने का अधिकार होगा, जबकि न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) और बीएआरसी रिएक्टर के डिजाइन और निर्माण का काम करेंगे. इसका संचालन एनपीसीआईएल करेगा.
आइसोटोप उत्पादन के लिए अलग रिएक्टर नहीं
बता दें कि इस समय भारत के पास आइसोटोप उत्पादन के लिए कोई अलग रिएक्टर नहीं है. जो मौजूदा रिएक्टर हैं, वे परमाणु चिकित्सा के साथ-साथ भौतिकी और विकिरण अनुसंधान के लिए भी इस्तेमाल किए जाते हैं. बीएआरसी वर्तमान में कैंसर जैसी बीमारियों के निदान और उपचार के लिए भारत भर के चिकित्सा संस्थानों को सालाना लगभग दो लाख यूनिट परमाणु सामग्री की आपूर्ति करता है.
बीएआरसी अधिकारी के मुताबिक, कुल मरीजों के भार का लगभग 10 फीसदी टाटा मेमोरियल सेंटर संभालता है, जबकि 370 अस्पताल मिलकर लगभग 60 फीसदी मरीजों को संभालते हैं. इसके अलावा, पीईटी स्कैन, सीटी स्कैन और अन्य परमाणु चिकित्सा प्रक्रियाओं के लिए सालाना लगभग दो लाख आइसोटोपिक स्रोता की आपूर्ति की जाती है.
आत्मनिर्भरता और वैश्विक पहचान की ओर बढ़ता कदम
उन्होंने बताया कि नया रिएक्टर भारत को रेडियोआइसोटोप उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाएगा और यूरोप, ऑस्ट्रेलिया और एशिया से आयात पर निर्भरता घटाएगा. यह भारत को वैश्विक परमाणु चिकित्सा बाजार में एक अहम खिलाड़ी के तौर पर स्थापित करेगा.
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