Special Story: जैविक खाद पर विशेष शोध, भारत के खिलाड़ियों के जैसे ही भारत के केंचुओं ने किया कमाल

Abhinav Tripathi
Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Jhansi Special Story, विवेक राजौरिया/ झांसी: झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में एक खास तरह के शोध में पता चला है कि भारतीय केचुए ऑस्ट्रेलिया को मात दे रहे हैं. दरअसल, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के रिसर्च में यह बात सामने आई है कि भारत के केंचुओं ने ऑस्ट्रेलिया के केंचुओं को खाद बनाने में पीछे छोड़ दिया है. इस बात के सामने आने के बाद लोगों का कहना है कि केवल भारत के खिलाड़ी ही नहीं बल्कि देश के केचुए भी कमाल कर रहे हैं. बता दें कि कृषि विश्वविद्यालय के वर्मी कंपोस्ट यूनिट में यह रिसर्च किया गया है.

जानिए रिसर्च के बारे में
जानकारी हो कि एक साल में भारतीय केंचुओं ने जहां 90 टन खाद का निर्माण किया. वहीं, ऑस्ट्रेलियन केचुए सिर्फ 40 टन ही खाद बना पाए हैं. कृषि विश्वविद्यालय इस जैविक खाद को किसानों को देने के साथ ही अपने फार्म में भी उपयोग करता है. केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय किसानों को जैविक खेती के लिए लगातार प्रेरित करता है. अपने वर्मी कंपोस्ट यूनिट के एक हिस्से में भारतीय केंचुआ को रखा गया था और दूसरे में ऑस्ट्रेलियन केंचुओं को रखा गया. दोनों प्रजाति के केचुओं की खाद की गुणवत्ता लगभग एक जैसी है.

केचुओं ने खूब बनाए खाद
उल्लेखनीय है कि कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. अनिल कुमार राय ने बताया कि पिछले 1 साल से यह रिसर्च किया जा रहा था. रिसर्च में भारतीय केंचुओं का प्रदर्शन उम्मीद से बेहतर रहा है. भारतीय केंचुए ने 80 से 90 टन खाद बनाई है. ऑस्ट्रेलिया केंचुए इसका आधा भी नहीं कर पाए हैं. देसी केंचुए कई मायनों में बेहतर होते हैं. हालांकि, ऑस्ट्रेलिया केंचुए आज भी बाजार में थोड़े सस्ते आते हैं.

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