बच्चों की सेहत बनाम जहरीली हवा: MLA डॉ. राजेश्वर सिंह ने उठाई निर्णायक नीति की मांग

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Lucknow: दिल्ली-एनसीआर में लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता और बच्चों के स्वास्थ्य पर उसके गम्भीर प्रभाव को देखते हुए सरोजनी नगर के विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह  ने उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक महत्वपूर्ण पत्र लिखकर तत्काल एक “स्वच्छ-वायु शैक्षणिक निरंतरता नीति” लागू करने का अनुरोध किया है।
पत्र में उल्लेखित आंकड़ों के अनुसार 23 नवम्बर 2025 की CNN रिपोर्ट में दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) ने फिर से 450+ के ‘गंभीर’ स्तर को पार कर लिया है। वहीं नोएडा, गाज़ियाबाद, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, बागपत और शामली सहित यूपी के एनसीआर जनपद भी 300–400 के बेहद खतरनाक स्तर दर्ज कर रहे हैं, जो सुरक्षित सीमा (100) से कई गुना अधिक है।
डॉ. सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन स्पष्ट बताते हैं कि प्रदूषित हवा जीवन-आयु को औसतन 10 वर्ष तक घटा देती है और बच्चों के फेफड़ों, प्रतिरोधक क्षमता और मानसिक विकास पर अत्यंत दुष्प्रभाव डालती है।
उन्होंने लिखा, “बच्चों को ऐसी विषैली हवा में स्कूल भेजना, मानो उन्हें धीमी मृत्यु के वातावरण में धकेलने जैसा है। पर्यावरण की गलतियों की सज़ा बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए।”

डॉ. राजेश्वर सिंह द्वारा रखे गए प्रमुख सुझाव :

1. राज्य सरकार से त्वरित, तकनीक-आधारित समाधान लागू करने का अनुरोध करते हुए डॉ. सिंह जी ने निम्न प्रस्ताव रखे—जैसे ही किसी भी जिले का AQI ‘गंभीर’ (300+) स्तर पार करे, तुरंत सभी विद्यालयों में ऑनलाइन कक्षाएँ लागू की जाएँ।
2. जिला-वार AQI मॉनिटरिंग डैशबोर्ड बनाया जाए, जो स्वतः ही स्कूल बंद/ऑनलाइन पढ़ाई के निर्देश जारी कर सके।
3. शिक्षा विभाग के मौजूदा डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स के माध्यम से पढ़ाई निर्बाध रूप से जारी रखी जाए।
4. शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा आईटी विभागों के बीच समन्वय स्थापित कर यह नीति दिसंबर–जनवरी के धुंध काल से पहले लागू की जाए।
5. नोएडा, गाज़ियाबाद, मेरठ, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, शामली और अन्य एनसीआर जनपदों के जिलाधिकारियों को तत्काल दिशा-निर्देश जारी किए जाएँ।

जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता:

पत्र में डॉ. सिंह जी ने आश्चर्य व्यक्त किया कि हर वर्ष यह संकट दोहराए जाने के बावजूद अब तक कोई स्थायी नीति क्यों नहीं बनाई गई। उन्होंने लिखा, “जब प्रदूषण हर साल हजारों जानें लेता है, तब फाइलें धीमी क्यों चलती हैं? निर्णय ठंडे बस्ते में क्यों पड़े रहते हैं? अब समय आ गया है कि इस प्रशासनिक उदासीनता की जिम्मेदारी तय की जाए।”
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