Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि, पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किए जाने पर फैसला लेते वक्त पहलगाम जैसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से मांगा जवाब
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायणन की ओर से जल्द सुनवाई की मांग पर कोर्ट ने कहा कि, जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने से पहले जमीनी हकीकत पर फैसला होगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि इस मुद्दे पर फैसला लेते समय जमीनी हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
फैसला लेने की प्रक्रिया में कई बातों पर किया जाता है विचार
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस दलील पर भी ध्यान दिया कि, फैसला लेने की प्रक्रिया में कई बातों पर विचार किया जाता है. इसके लिए शिक्षाविद जहूर अहमद भट और सामाजिक- राजनीतिक कार्यकर्ता अहमद मलिक की ओर से याचिका दायर की गई थी. पीठ ने शिक्षाविद याचिका को आठ हफ्ते बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया.
अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा था
CJI ने कहा कि पहलगाम में जो हुआ उसे आप नजरअंदाज नहीं कर सकते. फैसला संसद और कार्यपालिका को लेना है. इससे पहले 11 दिसंबर 2023 को सर्वोच्च न्यायालय ने सर्वसम्मति से अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा था. अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दे रखा था. साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया था कि केंद्र शासित प्रदेश में सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराए जाएं और इसका राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल किया जाए. पिछले साल शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर केंद्र को दो महीने के भीतर जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.