75वीं पुण्यतिथि पर याद किए गए स्वामी सहजानंद सरस्वती, Bharat Express के CMD उपेंद्र राय बोले- ‘भारत को विकसित बनाना है तो जाति से ऊपर उठकर सोचना होगा’

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
यूपी के गाजीपुर में आज एक विशेष आयोजन हुआ. मौका था युगदृष्टा, समाज-सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी स्वामी सहजानंद सरस्वती की 75वीं पुण्यतिथि का. इस मौके पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए स्वामी सहजानंद सरस्वती न्यास द्वारा एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें देशभर से कई गणमान्य लोग शामिल हुए. इस कार्यक्रम में भारत एक्सप्रेस मीडिया ग्रुप के चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ उपेंद्र राय भी विशेष रूप से पहुंचे. मंच पर उनका माल्यार्पण कर और स्मृति चिन्ह भेंट कर स्वागत किया गया. लेकिन यह कार्यक्रम सिर्फ रस्म अदायगी नहीं था, बल्कि उपेंद्र राय के वक्तव्यों ने मौजूद जनसमूह को सोचने पर मजबूर कर दिया.

देश में जाति बनी भेदभाव का आधार

सीएमडी उपेंद्र राय ने कहा कि आज हमारे देश में 38 लाख जातियां और साढ़े तीन लाख धर्म-संप्रदाय हैं. इतनी विविधता अगर ताकत बनती, तो बात अलग थी, लेकिन यहां ये भेदभाव का आधार बन गई है. जिस देश में इतनी दीवारें खड़ी हों, वहां समग्र विकास मुमकिन नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि भारत को आज एक और धार्मिक परिवर्तन की ज़रूरत है, जो जाति और कर्मकांडों के बोझ से इसे मुक्त करे. स्वामी सहजानंद सरस्वती ने भी अपने दौर में यही कोशिश की थी.

“अमेरिका में कोई जाति नहीं पूछता”

अपने भाषण में उपेंद्र राय ने अमेरिका का जिक्र करते हुए कहा कि देश के कई महान पुरुषों ने वहां इसलिए प्रगति की क्योंकि वहां उन्हें उनकी जाति से नहीं, उनके काम से पहचाना गया. उन्होंने कहा कि सारे महापुरुष अमेरिका क्यों गए? क्योंकि वहां जाति नहीं पूछी जाती. वहां पहचान होती है आपके हुनर और योगदान की. उपेंद्र राय ने आगे कहा कि बाजार में कोरे कागज का मूल्य है. उसपर छपने के बाद वो रद्दी हो जाता है. जिसके बाद उसका कोई उपयोग नहीं रह जाता.

किसान आंदोलन से लेकर साहित्य तक स्वामी जी का योगदान

उपेंद्र राय ने स्वामी सहजानंद सरस्वती के जीवन के कई पहलुओं को सामने रखा. उन्होंने बताया कि कैसे स्वामी जी ने न सिर्फ किसानों की आवाज़ बुलंद की बल्कि समाज में व्याप्त रूढ़ियों पर भी करारा प्रहार किया. उन्होंने कहा कि स्वामी जी को वेदों और साहित्य की गहरी समझ थी. उन्होंने निडर होकर समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई. यही कारण है कि उनका नाम आज भी समाजसुधारकों की पहली पंक्ति में लिया जाता है.

मंदिर-मस्जिद पर उठाए सवाल, भूखे इंसान की बात की

स्वामी जी की एक कविता का जिक्र करते हुए भारत एक्सप्रेस मीडिया ग्रुप के चेयरमैन उपेंद्र राय बोले– “मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर ये जगमग-जगमग करते हैं, और इबादत करने वाले भूखे-नंगे मरते हैं. जो अन्न-वस्त्र उपजाएंगे, सो कानून बनाएंगे. ये भारतवर्ष उसी का है, शासन वही चलाएगा.”
उन्होंने कहा कि ये पंक्तियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उनके समय में थीं.

धार्मिक कर्मकांडों से आगे बढ़ने की जरूरत

उपेंद्र राय ने महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि बुद्ध ने ईश्वर को नहीं माना, लेकिन कर्मों में भरोसा किया. उन्होंने बताया कि हमारे कर्मों का प्रभाव हमारी आत्मा पर रहता है, जैसे किसी कमरे में पानी गिर जाए तो उसके निशान रह जाते हैं. उन्होंने आगे कहा कि अगर हम अपने कर्मों को सुधारें तो धर्म भी सुधरेगा, समाज भी और देश भी.

भारत में इसलिए होती है नागों की पूजा

भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन उपेंद्र राय ने भारत की प्राचीन परंपरा को लेकर कहा कि महात्मा बुद्ध को जब ज्ञान प्राप्त हुआ, तो नागों ने पहचान लिया, उस समय बहुत तेज बारिश हो रही थी, तब लाखों नागों ने अपने फन से उन्हें ढक लिया कि वह कहीं भीग न जाएं. उन्होंने कहा कि हमारे धर्म में नागों की शायद इसलिए पूजा होती है, क्योंकि नाग ज्ञान प्राप्त आत्मा को पहचान लेता है.

“China is a hub for production”

अपने भाषण में भारत एक्सप्रेस के चेयरमैन, भारत की आर्थिक स्थिति और चीन की तुलना भी की. उपेंद्र राय ने कहा कि 1986 में भारत और चीन की जीडीपी बराबर थी. लेकिन आज चीन न केवल अपनी जरूरतें पूरी करता है बल्कि दुनिया के 40% प्रोडक्शन का भी हिस्सा है. उन्होंने आगे कहा कि अगर मैं कहूं कि China is a hub for production, तो यह गलत नहीं होगा. हमें भी ऐसी ही सोच की ज़रूरत है.

“स्वामी सहजानंद सरस्वती – एक युग प्रवर्तक”

कार्यक्रम के अंत में उपेंद्र राय ने कहा कि स्वामी सहजानंद सरस्वती सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, वे एक युग प्रवर्तक थे. उनका अध्ययन बुद्ध, महावीर और विवेकानंद जैसे विचारकों के समकक्ष था. उन्होंने जोर देकर कहा कि भूमिहार समाज में उनके जैसा कोई दूसरा नहीं हुआ. उनके विचार आज भी उतने ही सशक्त हैं, जितने तब थे. अगर भारत को जातियों के जाल से निकालना है, तो हमें स्वामी जी के विचारों की ओर लौटना होगा.
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