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ईश्वर के स्मरण से जगत की बुराइयों का करना है विस्मरण: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, विपदो नैव विपदः सम्पदो नैव सम्पदः। विपद विस्मरणं विष्णो सम्पद नारायणस्मृतिः।। पूजा-पाठ, तीर्थयात्रा, सत्संग-कीर्तन से आनंद क्यों आता है। कथा-कीर्तन में जगत का विस्मरण होता है। जगत के विस्मरण में आनंद...

सत्संग, कथा, कीर्तन, भजन से छंट जाती हैं हमारी बुराइयां: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, एक ही शहर के, एक ही गली के, एक ही मकान में, मैं और वो दोनों रहते हैं। पर पता नहीं, क्यों न मिले हम? क्यों न मिला वो? तड़प...

सत्पुरुषों में जो आसक्ति है, वही है सत्संग: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, गोवर्धन पूजा- भगवान दो रूप में हो गये. एक रूप में भगवान बृजवासियों के साथ पूजन कर रहे हैं और दूसरे रूप में गिरिराज जी पर प्रकट होकर पूजन स्वीकार...

व्यक्ति का त्याग ही उसके सम्मान का होता है कारण: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्री कृष्ण के सखा सुदामा, बड़े त्यागी-तपस्वी थे। अपने नित्य धर्म में लगे रहते थे। वेद का पठन, पाठन, यही इनका परम धर्म था। भगवान की इच्छा से कोई वस्तु...

माया की समस्त ग्रंथियों को खोल देता है ग्रंथ: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत महापुराण बड़ा अद्भुत ग्रंथ है। ग्रंथ का अर्थ होता है गांठ, पुलिंग में ग्रंथ कहते हैं और स्त्रीलिंग में ग्रंथि कहते हैं। ग्रंथि अर्थात् गांठ,  ग्रंथ का मतलब गांठ...

भगवान की प्रत्येक लीला होती है ‘सर्वजन जनहिताय-सर्वजन सुखाय’: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रतिवर्ष बृजवासी कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को इंद्र की पूजा किया करते थे। 56 प्रकार का भोग बनाकर इंद्र को भोग लगाते थे। इंद्र की पूजा की तैयारी चल...

माया की समस्त ग्रंथियों को खोल देता है ग्रंथ: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्भागवत महापुराण बड़ा अद्भुत ग्रंथ है। ग्रंथ का अर्थ होता है गांठ, पुलिंग में ग्रंथ कहते हैं और स्त्रीलिंग में ग्रंथि कहते हैं। ग्रंथि अर्थात् गांठ, ग्रंथ का मतलब गांठ...

सांख्ययोग को ही कहा जाता है ज्ञानयोग: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, एतावान सांख्य योगाभ्यां स्वधर्म परिनिष्ठया। जन्मलाभः परः पुसांऽन्ते नारायणस्मृतिः।। मानव जीवन में जीवन रहते तीन साधन करना है। ये तीन साधन क्या है? यही कर्म, ज्ञान, भक्ति है। सांख्य-सांख्ययोग को ही...

मृत्यु से घबड़ाता वही है, जिसने जीवन में कृत्कृत्यता प्राप्त नहीं की: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कृतकृत्याह प्रतीक्षन्ते मृत्युं प्रियमिवातिथम्। जिसने जीवन में कृतकत्यता प्राप्त कर ली वो मृत्यु की प्रतीक्षा करता है। प्रिय अतिथि के लिए जैसे हम तैयारी करते हैं, अब आने वाले होंगे,...

भगवती सती ने दक्ष के यज्ञ में शरीर का किया त्याग: दिव्य मोरारी बापू

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, प्रश्न-भगवान की कथा सुनने का क्या फल है? उत्तर- भगवान की कथा श्रवण करने के अनंत फल है। उसमें से संतों का एक भाव श्रद्धा से हृदयंगम करना चाहिए। भगवान...
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