Chardham Yatra 2025: चारधाम यात्रा की पवित्रता तीर्थाटन एवं पर्यटन का अंतर समझने की आवश्यकता

Chardham Yatra 2025: अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के पावन मौके पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम (Gangotri and Yamunotri Dham) के कपाट खुलने के साथ ही चारधाम यात्रा (Chardham Yatra) की शुरुआत हो गई है. उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित गंगोत्री धाम (Gangotri Dham) को मां गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है. हालांकि, यहां से करीब 16 किमी दूर गोमुख से मां गंगा का उद्गम होता है. मां गंगा को समर्पित गंगोत्री धाम भागीरथी नदी (Bhagirathi River) के किनारे स्थित है. गर्मियों में अक्षय तृतीया पर गंगोत्री धाम के कपाट खुलते हैं और दीपावली के समय पर बंद होते हैं. इसके बाद सर्दियों में मां गंगा की मूर्ति को हर्षिल के मुखबा गांव ले जाया जाता है. ये मां गंगा के मायके के रूप में प्रसिद्ध है और गांव के लोग मां गंगा को गंगोत्री धाम के लिए बेटी के तौर पर विदा करते हैं.

राजा भगीरथ ने की थी कठोर तपस्या

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा भगीरथ (Raja Bhagiratha) ने कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद मां गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं. भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए मां गंगा को बुलाया था. चूंकि मां गंगा का प्रवाह बहुत ज्यादा था इसलिए भगवान शिवजी ने अपनी जटाओं को फैलाकर इसी स्थान पर मां गंगा का वेग धीमा किया था. भागीरथी नदी पर एक चट्टान के तौर पर यह शिवलिंग स्थित है. सर्दियों में जब पानी का स्तर काफी कम हो जाता है तब यह शिवलिंग दिखते हैं. एक मान्यता यह भी है कि इसी चट्टान पर राजा भगीरथ ने तपस्या की थी और इसके पास 18वीं सदी में मंदिर का निर्माण कराया गया. पहले यहां पर मंदिर नहीं था. बाद के समय में यहां पर गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा (Gorkha Commander Amar Singh Thapa) ने गंगा मंदिर बनवाया था, जिसका जीर्णोद्धार बाद में जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने करवाया था.

भक्त मां गंगा के दर्शन के लिए आते हैं मुखबा

मुखबा गांव को लेकर भी मान्यता है कि यह ऋषि मतंग की तपोभूमि है और उन्होंने तपस्या करके मां गंगा से इसी स्थान पर शीतकालीन प्रवास करने का वरदान मांगा था. यही वजह है कि सर्दियों में मां गंगा अपने मायके यानी मुखबा में रहती हैं और भक्त उनके दर्शन के लिए यहां आते हैं. जब मां गंगा मुखबा आती हैं तो उनका बेटी की तरह ही स्वागत किया जाता है और जब वह गंगोत्री के लिए जाती हैं तब भी उन्हें बेटी की तरह ही विदा किया जाता है. स्थानीय परंपरा के अनुसार, गांव वाले मां गंगा को कल्यो और फाफरे के भोग के साथ विदा करते हैं और ग्रामीण इसे लेकर गंगोत्री धाम तक जाते हैं, जिसे बाद में महाप्रसाद के तौर पर बांटा जाता है.

अक्षय तृतीया को खुलते हैं यमुनोत्री धाम के कपाट

स्थानीय परंपरा में विदाई के समय कल्यो का प्रमुख महत्व माना जाता है. इसी तरह उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं. यमुनोत्री धाम से ही चारधाम यात्रा शुरू होती है. मां यमुना के उद्गम स्थल यमुनोत्री से चारधाम यात्रा शुरू होने का एक कारण यह माना जाता है कि यह सबसे पश्चिम में स्थित है और यहां से पूर्व की ओर भक्त जाते हैं. इससे पहाड़ों में यात्रा अपेक्षाकृत आसान हो जाती है. वहीं एक मान्यता यह भी है कि प्राचीन समय में ऋषि-मुनि यहीं से चारधाम यात्रा की शुरुआत करते थे, जो अब परंपरा का हिस्सा बन गया है. मान्यता है कि यमुना नदी में स्नान करने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है. यहां एक गर्म पानी का कुंड है, जिसे सूर्य कुंड कहा जाता है.
इसमें पोटली में बांधकर चावल और आलू उबाले जाते हैं और फिर इसका मां यमुना को भोग लगाया जाता है. सर्दियों में यमुनोत्री के कपाट भी बंद हो जाते हैं और मां यमुना को उत्तरकाशी जिले में ही स्थित खरसाली गांव ले जाया जाता है. फिर अक्षय तृतीया पर यमुनोत्री के कपाट खुलते हैं. मान्यता है कि मां यमुना की डोली जब यमुनोत्री के लिए रवाना होती है तब अपनी बहन यमुना को विदा करने के लिए शनिदेव महाराज सोमेश्वर महाराज यमुनोत्री तक जाते हैं, यानी उनकी डोली भी साथ में ले जाई जाती है. यहां मां यमुना को विराजमान करने के बाद शनिदेव महाराज सोमेश्वर महाराज की डोली वापस खरसाली गांव आती है. सूर्यदेव की पुत्री मां यमुना को लेकर मान्यता है कि आसित मुनि वृद्धावस्था में अपनी कुटिया से बाहर नहीं जा पाते थे.
तब उनकी इच्छा कुंड स्नान की हुई. तब उन्होंने तपस्या की और उनके तप से प्रसन्न होकर मां यमुना कुटिया में ही प्रकट हो गई थीं. इसके बाद से इस स्थान को यमुनोत्री के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि भूकंप की वजह से मंदिर को नुकसान पहुंचा था. 16वीं सदी में टिहरी गढ़वाल के राजा और जयपुर की महारानी ने इस मंदिर का पुनर्निमाण करवाया था. सनातम धर्म में चारधाम यात्रा की महत्ता से प्रेरित होकर लाखों यात्रा यहां आते हैं. लेकिन समय के साथ और कथित आधुनिकता के प्रभाव के कारण कुछ लोगों के लिए यह यात्रा धार्मिक कार्य न होकर, मनोरंजन और पर्यटन का अवसर बन गई है. यह मानसिकता चारधाम यात्रा की पवित्रता को प्रभावित करने लगी है.
जिसके कारण कई बार चारधाम यात्रा मार्ग में अनुषासनहीनता, अव्यवस्था और कई बार उच्छृंखलता का बोलबाला रहने लगा है. दूशित मानसिकता के कथित तीर्थयात्रियों के कारण प्रदूशण और गंदगी के दृष्य चारधाम यात्रा की पवित्रता पर नकारात्मक प्रभाव डालने लगे हैं. ऐसे में प्रत्येक परिवार के बड़े-बुजुर्गों का दायित्व है कि वे नई पीढ़ी को चारधाम यात्रा की पवित्रता से परिचित कराएं, ताकि इस धार्मिक प्रयोजन की पवित्रता यथावत बनी रह सके.
Latest News

हिमाचल: मंडी में बादल फटने से तबाही, तीन की मौत, 30 लोग लापता, कई घरों को नुकसान

मंडी: सोमवार की रात और मंगलवार तड़के बादल फटने की घटनाओं ने हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में भारी...

More Articles Like This

Exit mobile version