Hindi Diwas 2025: 14 सितंबर को ही क्यों मनाते हैं ‘हिंदी दिवस’, जानिए हिंदी की बिंदी से कैसे हो रहा अर्थ का अनर्थ

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Hindi Diwas 2025:  देश में प्रत्येक साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. भारत में हिंदी सबसे ज्यादा बोली और सुनी जाती है. आम बोलचाल की भाषा में हिंदी का अपना महत्वपूर्ण योगदान है. सबसे खास बात ये है कि मंडेरिन, स्पेनिश और अंग्रेजी के बाद हिंदी भाषा दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. इसी वजह से हिंदी के महत्व को लोगों के बीच पहुंचाने के लिए प्रत्येक साल देश में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है.

आपको बता दें कि हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है, संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दे दिया था. इसी के बाद से हिंदी दिवस को मानाने की शुरुआत हुई. हिंदी भाषा की पहली फिल्म मदर इंडिया है. हिंदी के विकास के लिए तमाम प्रयास किए गए हैं. बता दें कि इसे गूगल ने सबसे पहले अपने सर्च इंजन पर साल 2009 में लिया था. इतना ही नहीं हिंदी वेब एड्रेस बनाने की सुविधा 2010 से शुरू की गई थी.

हिंदी का बिंदी कनेक्शन

आज के समय में इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि हिंदी को बोलने से लोग शर्माते हैं. ऐसे में लोगों ने हिंदी भाषा को ही नया रूप दे दिया है. आज के इस मॉर्डन जमाने के लोगों ने हिंदी में ही इंग्लिश मिलाकर हिंग्लिश कर दिया है. जिस वजह से भाषा में अनेक गलतियां मिल रही हैं. हिंदी के शुद्ध वर्तनी की बात करें तो मात्राओं में से बिंदी गायब की जा चुकी है.

हिंदी वर्तनी के अनुसार आधे ‘म’ के लिए ‘गोल’ और आधे ‘न’ के लिए ‘चौकोर’ बिंदी हुआ करती थी. इसी के साथ चंद्र बिंदु भी हुआ करता था, लेकिन आज के बदलती भाषा और डिजिटल के दौर में सारे बिंदी को एक ही कर दिया गया है. इस परिवर्तन के चलते अर्थ का अनर्थ तो हो ही रहा है साथ ही उच्चारण भी अशुद्ध होता जा रहा है.

हिंदी का सम्मान जरुरी

भारत में सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी ही है. देश के अधिकतर हिस्से में लोग हिंदी में बात करना पसंद करते हैं. ऐसे में हम अगर हिंदी के सम्मान के बारे में बात करते हैं तो बोलते या लिखते समय शब्द का सही उच्चारण और लिखने के दौरान मात्राओं का प्रयोग कर के हिंदी का सम्मान किया जा सकता है. दरअसल, बिना मातृभाषा के समाज की तरक्की संभव नहीं है. ऐसे में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी भाषा के सम्मान में एक पंक्ति लिखी है. ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल’।

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