इंडोनेशिया के प्रम्बानन मंदिर के संरक्षण में मदद करेगा भारत, “हेरिटेज डिप्लोमेसी” को मिलेगी नई पहचान

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Heritage Diplomacy: भारत की सांस्कृतिक शक्ति और कूटनीति का अब एक नया रूप देखने को मिल रहा है. दरअसल, गणतंत्र दिवस 2025 पर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के स्वागत के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने ऐलान किया कि जावा स्थित प्रम्बानन मंदिर परिसर के अब तक असंशोधित हिस्सों के संरक्षण में भारत मदद करेगा.

जानकारों के मुताबिक, पीएम मोदी का यह कदम भारत की “हेरिटेज डिप्लोमेसी” यानी विरासत कूटनीति का हिस्सा है, जो विदेशों में पुरातत्व और संरक्षण परियोजनाओं के ज़रिए भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत करता है.

11 देशों में 20 विरासत परियोजनाओं में किया निवेश

बता दें कि पिछले एक दशक में भारत के विदेश मंत्रालय ने 11 देशों में 20 विरासत परियोजनाओं में निवेश किया है, जिनमें से 14 परियोजनाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संचालित की जा रही हैं. इन परियोजनाओं का उद्देश्य न सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना है, बल्कि भारत की ऐतिहासिक और धार्मिक विरासत को वैश्विक मंच पर पुनर्स्थापित करना भी है.

प्रम्बानन मंदिर हिन्दू-बौद्ध साझी विरासत

दरअसल, जावा का प्रम्बानन मंदिर इंडोनेशिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर परिसर है, भगवान ब्रह्मा, विष्‍णु, महेश को समर्पित इस मंदिर को 9वीं सदी में बनाया गया था, जो इंडोनेशिया की बहुसांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है. ऐसे में भारत द्वारा इसके संरक्षण में मदद न केवल सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करती है, बल्कि हिंदू-बौद्ध सभ्यताओं के साझा इतिहास को भी पुनर्जीवित करती है.

एशिया में बढ़ रहा भारत का कुटनीतिक प्रभाव

जानकारों के मुताबिक, भारत की यह “हेरिटेज डिप्लोमेसी” न केवल सांस्कृतिक, बल्कि रणनीतिक हितों से भी जुड़ी है. ऐसे संरक्षण कार्यों के ज़रिए ही भारत दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया में कूटनीतिक प्रभाव बढ़ा रहा है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड जैसी रणनीतियों का वैकल्पिक जवाब भी मानी जा रही है.

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