New Delhi: मध्य-पूर्व के अरब और मुस्लिम देशों ने पश्चिमी देशों पर तीखा हमला किया है. कहा है कि हमने मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकी माना और प्रतिबंधित किया. फिर पश्चिम हमसे ज़्यादा मुस्लिम बनने की कोशिश क्यों कर रहा है? इन देशों ने सवाल उठाया है कि जब वे स्वयं मुस्लिम और इस्लामी समाज से जुड़े होने के बावजूद मुस्लिम ब्रदरहुड को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं तो फिर ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे पश्चिमी देश इस संगठन से जुड़े लोगों को गतिविधियों और विरोध-प्रदर्शनों की अनुमति क्यों दे रहे हैं?
आंतरिक सुरक्षा को लेकर बहस तेज़
अरब नेताओं का यह बयान ऐसे समय में आया है जब यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में इस्लामी संगठनों की भूमिका, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आंतरिक सुरक्षा को लेकर बहस तेज़ हो गई है. अरब देशों का तर्क है कि मुस्लिम ब्रदरहुड केवल एक वैचारिक आंदोलन नहीं बल्कि कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता, हिंसा और सत्ता पलट से जुड़ा रहा है.
लोकतांत्रिक ढांचे के अनुरूप नहीं
दूसरी ओर पश्चिमी देशों का रुख यह है कि जब तक किसी संगठन की गतिविधियां सीधे तौर पर हिंसा या आतंक से नहीं जुड़ी हों, तब तक उसे प्रतिबंधित करना उनके कानूनी और लोकतांत्रिक ढांचे के अनुरूप नहीं है. विश्लेषकों के मुताबिक यह टकराव केवल मुस्लिम ब्रदरहुड तक सीमित नहीं है बल्कि यह मध्य-पूर्व की सुरक्षा-केंद्रित सोच और पश्चिमी उदार लोकतंत्र के बीच गहरे वैचारिक अंतर को उजागर करता है.
झेली है ज़मीनी हकीकत
अरब देशों का कहना है कि ज़मीनी हकीकत उन्होंने झेली है इसलिए खतरे की पहचान भी वही बेहतर कर सकते हैं. बता दें कि ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में बोंडी बीच पर हुए हमले के बाद इसराइल और अरब देशों से कड़ी प्रतिक्रियाएँ सामने आई थीं. ये हमला यहूदी समुदाय के एक कार्यक्रम के दौरान हुआ, जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई थी.
ऑस्ट्रेलिया की नीतियाँ यहूदी-विरोधी
इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस हमले पर कहा था कि ऑस्ट्रेलिया की नीतियाँ यहूदी-विरोधी आग में घी डालने का काम कर रही हैं. नेतन्याहू ने कहा था कि यहूदी-विरोध एक कैंसर है जो तब फैलता है जब नेता चुप रहते हैं.
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