पाकिस्तान-अफगानिस्तान जंग में होगी सऊदी अरब की एंट्री? जानिए क्‍या है भारत और चीन का रूख

Aarti Kushwaha
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Pak-Saudi Defence Deal: इस समय पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान के बीच डूरंड लाइन पर स्थिति तनावपूर्ण बने हुए है. हाल ही में दोनों देशों के बीच सैनिकों के झड़प के बीच करीब 12 सैनिकों के मारे जाने की खबर है. हालांकि इस बार ये मामला केवल पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान के बीच का नहीं है, बल्कि इसमें सऊदी अरब के भूमिका की भी काफी चर्चा हो रही है.

दरअसल, पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच सितंबर 2025 में एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता हुआ था, जिसे “संयुक्त सुरक्षा संधि” का नाम दिया गया. बता दें कि इस समझौते के तहत, दोनों देशों में यदि किसी एक पर हमला होता है, तो इसे दोनों देशों पर माना जाएगा और दोनों मिलकर जवाबी कार्रवाई करने को बाध्य होंगे.

दर्जनों सैनिक हताहत

ऐसे में पाकिस्‍तान और अफगानिस्तान के बीच संघर्ष छिड़ चुका है, तो इस समझौते की पहली अग्नि परीक्षा शुरू हो गई है. बता दें कि शनिवार की रात अफगान बलों द्वारा पाकिस्तानी सैन्य चौकियों पर भीषण हमला किया गया, जिसका जवाब पाकिस्तान ने तोप, टैंक और हवाई हमलों के जरिए दिया. दोनों ओर से भारी हथियारों का इस्तेमाल हुआ और सीमा पर दर्जनों सैनिक हताहत हुए.

दोनों देशों के बीच अभी भी तनावपूर्ण हालांत बनें हुई है. ऐसे में अब सवाल यह है कि क्या सऊदी अरब इस झगड़े को पाकिस्तान पर हमला मानकर सक्रिय हस्तक्षेप करेगा या नहीं. हालांकि अभी तक सऊदी ने बहुत सावधानीपूर्वक और संतुलित प्रतिक्रिया दी है.

सऊदी अरब का संतुलित रुख

सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि “हम पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ते तनाव को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं. दोनों पक्षों को संयम बरतना चाहिए और बातचीत के माध्यम से विवाद का समाधान निकालना चाहिए. क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है.” हालांकि यह बयान किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करता है, बल्कि मध्यस्थ की भूमिका में खड़े रहने की रणनीति को दर्शाता है.

क्यों है सऊदी अरब दुविधा में?

वहीं, सऊदी अरब बडी दुविधा में फंसा हुआ है क्‍योंकि एक ओर जहां पाकिस्‍तान के साथ उसके लंबे समय से सैन्य और रणनीतिक संबंध हैं, वहीं, दूसरी ओर अफगानिस्तान, विशेष रूप से तालिबान के साथ भी रणनीतिक संबंध हैं. साल 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, सऊदी अरब ने कूटनीतिक संबंधों को पूरी तरह समाप्त नहीं किया और मानवीय सहायता व आर्थिक समर्थन के माध्यम से वहां अपनी उपस्थिति बनाए रखी. वहीं, इस द्विपक्षीय संतुलन को बिगाड़ने से सऊदी अरब को मध्य एशिया में अपने आर्थिक और धार्मिक प्रभाव को खतरा हो सकता है.

क्षेत्रीय असर और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं

दोनों देशों के बीच इस झड़प के चलते मध्य एशिया और खाड़ी क्षेत्र में कूटनीतिक हलचल शुरू हो गई है. इस दौरान कतर ने भी संयम बरतने की अपील की है और कहा है कि दोनों देशों को बातचीत से समाधान निकालना चाहिए. इसके अलावा, ईरान जैसी शक्तियां भी इस पूरे घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए हैं क्योंकि यह संघर्ष उनके सीमा क्षेत्रों को भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है.

इन सबके अलावा भारत और चीन जैसे बड़े क्षेत्रीय खिलाड़ी भी अफगान-पाक तनाव को अपनी रणनीति के हिसाब से देखने लगे हैं. भारत अफगानिस्तान में स्थायित्व का पक्षधर है, जबकि चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश कर रखा है.

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