पाकिस्तान में बढ़ रहा इस बीमारी का खतरा, हर साल 70 हजार से अधिक लोगों की जाती है जान

Abhinav Tripathi
Sub Editor, The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

Pakistan News: पाकिस्तान के कराची शहर में आने वाले दिनों में तापमान में बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है. पाकिस्तान के मौसम विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में यहां पर तापमान 3 से 4 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है, जो कि 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है. इस कारण अगले कुछ दिनों तक पाकिस्तानी शहर कराची और इससे सटे ग्रामीण इलाकों में भीषण गर्मी पड़ने की संभावना है.

बताया जा रहा है कि सजावल, थट्टा, हैदराबाद, मीरपुर खास, उमरकोट और थारपरकर भी गर्मी की चपेट में रहेंगे. हालांकि, कुछ हिस्सों में बारिश की भी संभावना है. मौसम विभाग का कहना है कि बारिश के बाद भी इन इलाकों में राहत के कोई आसार नहीं है. जानकार बता रहे हैं कि ऐसा मौसम कई बीमारियों की वजह बन सकता है.

निमोनिया मरीजों की संख्या में होगी बढ़ोत्तरी

बता दें कि कराची और आस पास के इलाकों में बढ़ते प्रदूषण और बदलते मौसम के कारण निमोनिया के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. पाकिस्तानी स्वास्थ्य अधिकारियों की मानें तो अस्पतालों में रोजाना भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. जानकारों का कहना है कि अक्टूबर से दिसंबर तक निमोनिया के मामले अक्सर बढ़ जाते हैं. इस दौरान दो साल से कम उम्र के बच्चों और 65 साल से ज़्यादा उम्र के वयस्कों पर निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है.

रोजाना आ रहे 30 मरीज

पाकिस्तान में बदलते मौसम के कारण निमोनिया के मरीजों की संख्या बढ़ने लगी है. मरीजों में अधिकांश बच्चे और बुजुर्ग शामिल हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ की ओर से बताई गई जानकारी के अनुसार कराची में रोजाना निमोनिया के 30 मामले सामने आ रहे हैं. इसी के साथ अन्य चिकित्सालयों में भी इस रोग के मरीजों की संख्या बढ़ रही है.

हर साल जा रही है हजारों लोगों की जान

पाकिस्तान में अक्टूबर से दिसंबर का समय काफी डराने वाला रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस समय यहां पर निमोनिया के तमाम मरीज समाने आते हैं. औसत देखें तो हर साल पाकिस्तान में निमोनिया के कारण 70,000 से अधिक लोगों की जान जाती है. पाकिस्तान, दुनिया के उन चुनिंदा 13 देशों में से एक है जहां हर साल निमोनिया फैलता है और जो कि बच्चों की मौत का प्रमुख कारण निमोनिया है. हालांकि, निमोनिया से पीड़ित केवल 50% बच्चों को ही एंटीबायोटिक दवाएं मिल पाती हैं.

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