वार्षिक बजट में 20% की कटौती करेगा यूएन, जा सकती है 69000 कर्मचारियों की नौकरी, क्‍या ट्रंप-ड्रैगन है इसकी वजह?

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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United Nations Layoff: संयुक्त राष्ट्र (UN) स्थापना के बाद से आज तक वैश्विक शांति, मानवीय सहायता और बहुपक्षीय सहयोग का प्रमुख स्तंभ रहा है, लेकिन अब संगठन खुद आर्थिक संकट में फंसता दिख रहा है. दरअसल, यूएन सचिवालय $3.7 बिलियन के वार्षिक बजट में 20 प्रतिशत  की कटौती करने जा रहा है, जिससे करीब 6,900 नौकरियां समाप्त हो सकती है.

यूएन द्वारा इस बजट में कटौती का मुख्य वहज अमेरिका की ओर से भुगतान में कटौती है. बता दें कि अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र के बजट का लगभग 25% वहन करता है, ऐसे में उसका (अमेरिका) $1.5 बिलियन से अधिक का बकाया है, जिसमें चालू और पूर्ववर्ती वित्त वर्ष शामिल हैं.

UN80 नामक समीक्षा योजना और गुटेरेस की चेतावनी

रिपोर्ट के अनुसार, इस कटौती का हिस्सा है “UN80” नामक पुनर्गठन योजना, जिसकी शुरुआत मार्च 2025 में की गई थी. इस दौरान यूएन नियंत्रक चंद्रमौली रामनाथन ने अपने ज्ञापन में लिखा कि यह सुनिश्चित करने का एक महत्वाकांक्षी प्रयास है कि संयुक्त राष्ट्र 21वीं सदी के बहुपक्षवाद का समर्थन करने के लिए उपयुक्त बना रहे.

वहीं, इस मामले में महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सार्वजनिक ब्रीफिंग में स्पष्ट कर दिया कि यह समय “कठिन लेकिन आवश्यक निर्णयों” का है. गुटेरेस ने कहा कि संगठन को विभागों के विलय, संसाधनों के पुनर्वितरण और नौकरशाही को कम करने की ओर बढ़ना होगा.

अमेरिका और चीन की भूमिका

अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर चीन है, जो संयुक्त राष्ट्र का दूसरा सबसे बड़ा डोनर है, उसने भी समय पर भुगतान नहीं किया है. दोनों देशों की संयुक्त फंडिंग करीब 40% है, जिसके भुगतान में देरी संयुक्त राष्ट्र की तरलता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है.

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के कार्यकाल में अमेरिकी सरकार ने यूएन की मानवीय एजेंसियों के लिए दिए जाने वाले फंड्स को अचानक रोक दिया, जिससे दर्जनों कार्यक्रमों को बंद करना पड़ा. टॉम फ्लेचर, जो मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय का नेतृत्व करते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी एजेंसी को $58 मिलियन के घाटे की भरपाई के लिए 20% स्टाफ में कटौती करनी पड़ी.

यूएन में यह कटौती से कई नेटवर्को पर पड़ेगा प्रभाव

जानकारों के मुताबिक, यदि यूएन में यह कटौती लागू होती है, तो इसका असर सिर्फ कर्मचारियों या नौकरियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इससे शांति स्थापना मिशनों की क्षमता घटेगी, बल्कि मानवीय सहायता अभियान भी बाधित होंगे. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्यों पर काम धीमा हो सकता है. न्याय, मानवाधिकार और शिक्षा जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे.

ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह में यूएन निदेशक रिचर्ड गोवन का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इस प्रकार की कटौती ट्रंप प्रशासन को संतुष्ट करेगी. यह संभव है कि अमेरिका इसे एक रणनीतिक जीत माने, लेकिन फंडिंग में कोई रियायत न दे.

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