लेपाक्षी मंदिर को क्यों कहा जाता है Hanging Pillar Temple, जानिए रहस्य

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Lepakshi Mandir: भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां लाखों मंदिर स्थित हैं. ये मंदिर अपने आप में कई रहस्य समेटे हुए हैं. कई ऐसी जगह भी है, जो सनातन धर्म के देवी देवताओं से भी जुड़ाव रखते हैं. हम आपके लिए एक ऐसे ही मंदिरों और जगहों की सीरीज लेकर आए हैं. इसमें हम आपको प्रतिदिन अनोखे मंदिर, पर्वत समेत दूसरी रहस्यमयी चीजों से रुबरु कराते हैं. आज हम आपको भगवान शिव के अनोखे मंदिर के बारे में बताएंगे. जहां पिछले 2000 वर्षों से एक खंभा हवा में लटका हुआ है. आइए आपको बताते है लेपाक्षी मंदिर के रहस्य और अनकहे सच को.

Hanging Pillar Temple के नाम से दुनिया भर में मशहूर
बेंगलुरू से 122 किमी दूर अनंतपुर जिले में स्थित लेपाक्षी मंदिर Hanging Pillar Temple के नाम से दुनिया भर में मशहूर है. इस मंदिर में कुल 70 स्तम्भ हैं. मंदिर के गर्भ गृह में भगवान शिव के स्वरूप वीरभद्र की मुर्ति स्थापित है. इस मंदिर में भगवान शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर की भी पूजा की जाती है. यहां स्थापित माता को भद्रकाली कहते हैं. इस मंदिर में एक ऐसा स्तंभ भी है जो जमीन से लगभग 1 इंच ऊपर हवा में लटका हुआ है. इस स्तम्भ को आकाश स्तम्भ के नाम से भी जाना जाता है. यहां आने वाले श्रद्धालु इस स्तम्भ के नीचे से कोई कपड़ा डालकर दूसरी तरफ से निकालने का प्रयास करते हैं, जो इस प्रयास में सफल होता है, मान्यता है कि उसके घर में सुख-शांति एवं समृद्धि आती है. कहते हैं कि आजादी के पहले अंग्रेजों ने इस रहस्य पता लगाने की बहुत कोशिशें की लेकिन वे असफल रहे.

हवा में झूलते खम्भे का रहस्य
कहते हैं कि झूलते खंभे का रहस्य जानने के लिए ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने 1902 में इस मंदिर के झूलते खंभे के रहस्य को समझने की अथक कोशिश की. उसने हवा में झूलते खंभों पर हथौड़ा चलाया. इस वजह से करीब 25 फीट दूर स्थित कुछ खंभों पर दरारें आ गईं, जिससे पता चला कि मंदिर का सारा वजन इसी झूलते खंभे पर टिका हुआ है. लेकिन अंत तक वह झूलते खंभों के रहस्य को नहीं समझ सका और इसे कुदरत का करिश्मा मानते हुए हार स्वीकार कर लिया.

आपको बता दें कि इस जगह का उल्लेख वाल्मीकि कृत रामायण में भी किया गया है. कहा जाता है कि इसी स्थान पर जटायु मुर्क्षित अवस्था में पड़े थे. जब भगवान राम एवं लक्ष्मण मां सीता की ढूंढ़ते हुए इस स्थान पर पहुंचे तो उन्हें देखा. श्रीराम ने जटायु को हाथ में लेकर कहा ‘उठो पक्षी राज’ इसे तेलुगू में ले पाक्षी कहते हैं. इसके बाद से इसका नाम लेपाक्षी पड़ गया. बता दें, मंदिर में एक बड़े से पैर का निशान भी है, जिसे त्रेता युग का प्रमाण बताया जाता है. इस पैर को कोई श्रीराम का बताता है तो कोई मां सीता का.

(Disclaimer: लेख में दी गई जानकारी समान्य जानकारियों और मान्यताओं पर आधारित है, इसकी पुष्टी The Printlines नहीं करता है.)

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