ज्यूडिशियल सर्विस में अब 3 साल की वकालत अनिवार्य, CJI गवई बोले- सिर्फ कानूनी पढाई से नहीं मिलता कोर्ट के सिस्टम का नॉलेज

Aarti Kushwaha
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के जजों यानी जूनियर डिविजन सिविल जज की नियुक्ति को लेकर अहम फैसला सुनाया है. अदालत का कहना है कि जूनियर डिविजन सिविल जज के पदों पर परीक्षा के लिए उम्मीदवार को कम से कम तीन साल की लीगल प्रैक्टिस करना जरूरी है, इसका मतलब है कि उम्‍मीदवार इन पदों के लिए परीक्षा तभी दे सकेंगे जब लॉ ग्रेजुएट होने के बाद तीन साल वकील के तौर पर काम करें.

बता दें कि यह फैसला मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई, जस्टिस एजी मसीह और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने यह फैसला सुनाया है. इस दौरान सीजेआई भूषण रामकृष्‍ण गवई ने कहा कि नए लॉ ग्रेजुएट सीधे जूनियर डिवीजन सिविल जज के लिए परीक्षा नहीं दे सकेंगे, उन्हें कम से कम 3 साल प्रैक्टिस के बाद ही जज की परीक्षा देनी होगी.

25 प्रतिशत विभागीय आरक्षण

सीजेआई गवई ने आागे कहा कि सीनियर डिवीजन सिविल जज की नियुक्ति में जूनियर सिविल जजों के लिए 25 प्रतिशत विभागीय आरक्षण है. ऐसे में तीन साल की अवधि को नामांकन की तारीख से माना जा सकता है. हालांकि ये शर्त उन परीक्षाओं पर लागू नहीं होगी, जिनकी प्रक्रिया हाईकोर्ट्स ने शुरू कर दी है, लेकिन आगे होने वाली परीक्षाओं में यह शर्त उम्‍मीद्वारों को पूरा करना होगा.

ये लोग भी इस परीक्षा के लिए होंगे वैलिड

इसी बीच कोर्ट ने एक छूट भी दी है. कोर्ट ने कहा है कि दस साल से काम कर रहे वकील का भी इसके लिए मान्‍य होगा, लेकिन उन्‍हें उस स्टेशन के ज्यूडिशियल अधिकारी से मान्यता प्राप्त होनी चाहिए. मतलब- कोई उम्‍मीद्वार ऐसे वकील के पास तीन साल प्रैक्टिस करता है तो वह भी जूनियर जज की परीक्षा के लिए वैलिड होगा.

वहीं, यदि कोई वकील सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में दस साल से प्रैक्टिस कर रहा है और उम्मीदवार उसके पास तीन साल तक काम करता है तो उस वकील को सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट से मान्यता मिली होनी चाहिए. इसके अलावा, तीन साल लॉ क्लर्क के तौर पर काम करने वाला उम्मीदवार भी परीक्षा दे सकता है.

सिर्फ कानून की किताबें पढ़ने ने नहीं मिलता नॉलेज

शीर्ष न्‍यायालय का मानना है कि ऐसे लॉ ग्रेजुएट को सिविल जज जैसे पद पर शामिल करना मुश्किल पैदा कर सकता है, जिसने एक दिन भी लीगल प्रैक्टिस न की हो. ऐसे में अदालत का कहना है कि 20 साल से ये प्रैक्टिस चली आ रही है, जिसके अच्छे परिणाम सामने नहीं आए हैं. लॉ ग्रेजुएट्स को सीधे ऐसे पद पर बिठा देने से कई दिक्कतें सामने आती हैं. सिर्फ कानून की किताबें पढ़ने या ट्रेनिंग से कोर्ट सिस्टम की नॉलेज नहीं मिल सकता है, ये तभी हो सकता है जब उम्मीदवार को कोर्ट के कामकाज के बारे में पता हो कि वकील और जज कोर्ट में कैसे काम करते हैं.

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