पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता मार्च 2014 में 75 गीगावाट से बढ़कर 2025 में 232 गीगावाट हो गई है. अक्षय ऊर्जा क्षमता (Renewable energy capacity) में सबसे बड़ी वृद्धि सौर ऊर्जा क्षमता में देखी गई है, जो 2014 में 2.8 गीगावाट से बढ़कर 2025 में 108 गीगावाट हो गई है. बढ़ी हुई क्षमता में जलविद्युत को भी शामिल किया गया है. पिछले 10 वर्षों में भारत की पवन ऊर्जा क्षमता भी दोगुनी हो गई है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की पवन ऊर्जा क्षमता, जो 2014 में 21 गीगावाट थी, 2025 में बढ़कर 51 गीगावाट हो गई है. इसके अलावा, भारत के सौर मॉड्यूल उत्पादन उद्योग (Solar Module Production Industry) ने भी कारोबार में तेजी देखी है, क्योंकि पिछले एक दशक में क्षमता स्थापना में तेजी आई है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दस वर्षों में भारत की सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता 2 गीगावाट से बढ़कर 90 गीगावाट हो गई है.
अक्षय ऊर्जा के लिए भविष्य की योजनाएँ
भारत ने 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने का एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर साल 50 गीगावाट हरित ऊर्जा क्षमता की आवश्यकता है. भारत ने 2024 में 25 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की, जो 2030 तक 500 गीगावाट तक पहुँचने के लिए आवश्यक क्षमता का आधा है. हालाँकि, क्षमता वृद्धि दर हर साल लगभग 34% बढ़ रही है, जबकि पिछले वर्ष यह 18.5 गीगावाट थी.
साथ ही, भारत सोलर सेल और वेफ़र्स के उत्पादन में भी तेज़ी ला रहा है.वर्तमान में, इसकी सोलर सेल उत्पादन क्षमता 25 गीगावाट और वेफ़र उत्पादन क्षमता 2 गीगावाट है. 2030 तक, भारत ने क्रमशः 100 गीगावाट और 40 गीगावाट सोलर सेल और सोलर वेफ़र उत्पादन क्षमता तक पहुँचने का लक्ष्य रखा है. इस बीच, जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए, भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सौर और पवन ऊर्जा उत्पादक बन गया है.