मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने एडिनबरा लॉ स्कूल (Edinburgh Law School) में “संविधान एक विकसित होती हुई संहिता” विषय पर आयोजित कार्यक्रम में अपने व्यक्तिगत सफर का उल्लेख किया कि कैसे वह वंचित पृष्ठभूमि से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे. उन्होंने भारतीय संविधान (Indian Constitution) की उस परिवर्तनकारी शक्ति को रेखांकित किया जो ऐतिहासिक रूप से शोषित वर्गों के लिए आशा और अवसर का स्रोत बनी.
उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) की दृष्टि का हवाला देते हुए कहा, प्रतिनिधित्व केवल सीटों का आवंटन नहीं, बल्कि यह एक नैतिक और लोकतांत्रिक आवश्यकता है, जो असमान समाज में सत्ता के पुनर्वितरण के लिए जरूरी है.
भारतीय संविधान को उन्होंने एक “सामाजिक अनुबंध” बताया जो जाति, बहिष्करण और अन्याय जैसे मुद्दों को न केवल स्वीकार करता है बल्कि उनमें हस्तक्षेप करता है ताकि सकारात्मक कार्रवाई के ज़रिए वास्तविक समानता प्राप्त की जा सके.
उन्होंने न्यायपालिका के कुछ ऐतिहासिक फैसलों का ज़िक्र किया जैसे ट्रांसजेंडर अधिकारों को मान्यता देने वाला NALSA निर्णय और सशस्त्र बलों में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित “बबिता पुनिया मामला” जिन्होंने ठोस प्रतिनिधित्व की दिशा में कदम बढ़ाए.
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा, भारतीय लोकतंत्र निरंतर विकसित हो रहा है और महिलाओं के लिए आरक्षण संबंधी हालिया संवैधानिक संशोधन तथा अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण को सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृति जैसी घटनाएं इसकी मिसाल हैं.