India Nepal Tension : लिपुलेख दर्रा, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हिमालय के ऊंचे पहाड़ों में 5,115 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इसके साथ ही यहां भारत-चीन और नेपाल तीनों अपनी सीमा साझा करते हैं इसलिए इसे त्रि-जंक्शन कहा जाता है. विशेष रूप से यह कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भारत और तिब्बत के बीच व्यापारियों, तीर्थयात्रियों और साधुओं के लिए महत्वपूर्ण रहा है. प्राप्त जानकारी के अनुसार यह दर्रा भारत का ही है, जिस पर नेपाल अपना झूठा दावा करता है. इसलिए यह अब विवादित हो गया है.
लिपुलेख विवाद की है जड़
लिपुलेख विवाद की जड़ें 1816 की सुगौली संधि से जुड़ी हैं. जानकारी देते हुए बता दें कि यह संधि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच हुई थी. इसके साथ ही इस संधि में काली नदी को भारत-नेपाल सीमा के रूप में जानी जाती है. ऐसे में नेपाल ने दावा करते हुए कहा है काली नदी का उद्गम लिपुलेख दर्रे से होता है, इसलिए लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसका हिस्सा है. इस मामले को लेकर नेपाल का कहना है कि ब्रिटिश काल में सीमा का गलत निर्धारण हुआ, लेकिन भारत ने उसके इस दावे को खारिज कर दिया.
भारत नेपाल के दावे को किया खारिज
भारत शुरू से ही नेपाल के इस दावे को खारिज करता रहा है. क्योंकि भारत का कहना है कि काली नदी का उद्गम कालापानी गांव के पास है, जहां पर सहायक नदियां मिलती हैं. प्राप्त जानकारी के अनुसार 2025 में भारत ने नेपाल के दावों को ‘असमर्थनीय’ और ‘कृत्रिम’ करार देते हुए खारिज कर दिया है. क्योंकि 1954 से इसी मार्ग से भारत-चीन के बीच व्यापार होता रहा है, जिस पर नेपाल ने तब आपत्ति नहीं जताई थी.
भारत के लिए लिपुलेख है जरूरी
लिपुलेख दर्रा भारत के लिए रणनीतिक, आर्थिक और धार्मिक तीनों तरह से महत्वपूर्ण है.
1. रणनीतिक महत्व
बता दें कि लिपुलेख भारत-चीन सीमा का एक महत्वपूर्ण बिंदु है. विशेष रूप से यह दर्रा भारत को तिब्बत तक पहुंच प्रदान करता है. इसके साथ ही सीमा पर सैन्य तैनाती के लिए रणनीतिक लाभ देता है. जानकारी के मुताबिक भारतीय लोगों को यात्रा के लिए भारत ने 2020 में लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर तक 80 किमी सड़क बनाई, जिससे लोगों को अब यात्रा करने में परेशानी नहीं होती और जहां यात्रा के लिए हफ्तों समय लगते थे, अब वो दो-तीन दिन में ही पूरे हो जाते हैं.
2. धार्मिक महत्व
लिपुलेख कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग है. इस दौरान यह क्षेत्र हिंदुओं के साथ, जैन और बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए भी पवित्र है. जानकारी देते हुए बता दें कि भारत के उत्तराखंड राज्य की सरकार ने 2024 में ‘ओल्ड लिपुलेख पास’ दृष्टिकोण बिंदु विकसित किया, जहां से माउंट कैलाश दिखता है, जिसने तीर्थयात्रा को और आकर्षक बना दिया.
-
आर्थिक महत्व
यह मार्ग हमेशा से भारत-चीन व्यापार का पारंपरिक मार्ग रहा है. बता दें कि दोनों दशो के बीच यह व्यापार 1954 में शुरू हुआ और 1962 में युद्ध के बाद बंद हो गया, लेकिन इसके बाद दोनों देशों ने 2015 में इसे फिर से खोलने पर सहमति जताई. इसके साथ ही हाल ही में 2025 में संपन्न हुई चीन के विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के बाद इस मार्ग को फिर से खोलने का फैसला हुआ, जो सीमा व्यापार को बढ़ावा देगा. यह भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का हिस्सा है. यही बात नेपाल को बुरी लग गई और उसने लिपुलेख पर अपना आधारहीन दावा कर दिया. लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने दृढ़ता से खारिज कर दिया.
नेपाल का दावा दोनों दृष्टि से कमजोर
जानकारी देते हुए बता दें कि ऐतिहासिक और भौगोलिक दोनों ही दृष्टि से नेपाल का दावा कमजोर है. भारत द्वारा उसके दावे को खारिज करने के बाद नेपाल ने 2020 में नया मानचित्र जारी कर कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को अपना हिस्सा दिखाया, जिसे उसकी संसद ने मंजूरी दी. लेकिन इस बात से स्पष्ट है कि उसका यह दावा झूठा और बनावटी है.
दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता हुआ मजबूत
विशेष रूप से लिपुलेख दर्रे में चीन के व्यापारिक और रणनीतिक हित जुड़े हैं. हाल ही में चीन ने भारत के साथ लिपुलेख दर्रे के जरिये व्यापाक शुरू होने पर सहमति जताई है. बता दें कि दोनों के इस फैसले से भारतीय यात्रा के लिए यह मार्ग भारत-चीन के बीच सुगम और दूरी को समेटने वाला है. इसके साथ ही 2015 में भारत-चीन व्यापार समझौते पर नेपाल की आपत्ति को चीन ने सही ठहराया, जिसे भारत के खिलाफ चीन की रणनीति माना गया. दोनों देशों के इस व्यापार समझौते में सहयोग को मजबूत किया है. इससे भले ही चीन का आर्थिक लाभ भले मिलता है, लेकिन भारत की रणनीतिक स्थिति भी मजबूत होती है.
इसे भी पढ़ें :- Varanasi में प्रॉपर्टी डीलर की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या, दौड़ाते ही पिस्टल लहराते हुए भाग निकले बदमाश