FY21-25 के बीच औसतन 6.9% वार्षिक दर से बढ़ा भारत का वास्तविक निवेश: Report

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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FY2021 से 2025 के बीच भारत में वास्तविक निवेश की औसत वार्षिक वृद्धि दर 6.9% रही, जो इस अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 5.4% वृद्धि दर से अधिक थी. क्रिसिल की ‘द रोड अहेड फॉर इंवेस्टमेंट’ रिपोर्ट के मुताबिक, FY25 में देश की निवेश दर दशकीय औसत को पार कर गई, जिसमें सरकारी एवं घरेलू व्यय की अहम भूमिका रही. रिपोर्ट में कहा गया है, FY21-25 के दौरान भारत का वास्तविक निवेश 6.9% प्रति वर्ष (औसत वास्तविक वृद्धि) बढ़ा, जो 5.4% सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि दर से अधिक है.

सकल स्थिर पूंजी निर्माण में वृद्धि

FY16 से 2025 के बीच सकल स्थिर पूंजी निर्माण के रूप में मापा गया निवेश, नॉमिनल और वास्तविक दोनों ही रूपों में औसत से बेहतर प्रदर्शन करता रहा. इस वृद्धि को गति देने में सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (पीएसयू) की महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिनका संयुक्त वास्तविक निवेश FY22 से 2024 के दौरान औसतन 13.9% की दर से बढ़ा.

घरेलू क्षेत्र, विशेषकर परिवार, सबसे बड़े योगदानकर्ता रहे, जिन्होंने मुख्य रूप से रियल एस्टेट क्षेत्र में मजबूत निवेश किया, जिसकी वार्षिक औसत वृद्धि दर 13.4% रही. हालांकि, निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र का पूंजीगत व्यय अपेक्षाकृत कमजोर रहा और इस दौरान केवल 8.7% की वास्तविक वृद्धि दर्ज की गई.

बाहरी चुनौतियों और राजकोषीय समेकन से निवेश पर प्रभाव

क्रिसिल ने कहा, जहां कॉर्पोरेट बैलेंस शीट मज़बूत हैं और बैंक ऋण देने की बेहतर स्थिति में हैं, वहीं अमेरिकी टैरिफ और ग्लोबल ट्रेड फ्रिक्शन जैसी बाहरी चुनौतियों ने बिजनेस सेंटीमेंट को कमजोर कर दिया है. भविष्य को देखते हुए, क्रिसिल ने आगाह किया कि राजकोषीय समेकन के कारण मध्यम अवधि में सरकार के नेतृत्व वाले निवेश में कमी आ सकती है. निवेश की तेज गति बनाए रखने के लिए नियामक अड़चनों को कम किया जाना चाहिए, साथ ही भूमि और बिजली की लागत को अधिक किफायती बनाया जाना चाहिए.

निवेश स्थिरता के लिए एफटीए और घरेलू आर्थिक मजबूती जरूरी

इसके अलावा, अनुबंधों के प्रवर्तन को मजबूत करना और टैरिफ बाधाओं को घटाना आवश्यक है. निवेशकों को स्थिरता देने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को भी तेजी से लागू करने की सिफारिश की गई है. रिपोर्ट में यह भी उजागर किया गया है कि वैश्विक स्तर की अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत की घरेलू आर्थिक स्थितियां जैसे कि स्वस्थ बैंक बैलेंस शीट, मजबूत उपभोग और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोत्साहन, दीर्घकालिक निवेश वृद्धि के लिए सहायक बनी हुई हैं.

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