Chabahar Port sanctions: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान के चाबहार बंदरगाह पर दी गई प्रतिबंध छूट को समाप्त करने का फैसला लिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति का यह निर्णय ईरान के विरुद्ध “अधिकतम दबाव नीति” का हिस्सा होने के साथ ही भारत की सामरिक और आर्थिक योजनाओं के लिए भी एक गहरी चोट साबित हो सकता है.
चाबहार बंदरगाह भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण
दरअसल, ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित गहरे पानी वाला चाबहार बंदरगाह भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. यह भारत के पश्चिमी तट के सबसे नज़दीकी ईरानी बंदरगाह होने के साथ-साथ पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (जहां चीन भारी निवेश कर चुका है) का प्रतिपक्ष भी है. 2016 में प्रधानमंत्री मोदी की तेहरान यात्रा के दौरान भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच चाबहार समझौता हुआ था, जिसके तहत इस बंदरगाह को मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक पहुंचने का एक वैकल्पिक मार्ग बनाया गया.
भारत ने 13 मई, 2024 को चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिए ईरान के साथ 10 साल का करार किया था. यह पहली बार था जब भारत ने किसी विदेशी बंदरगाह का प्रबंधन संभालने की पहल की थी. भारत साल 2003 से ही इस परियोजना पर काम करने का प्रस्ताव रख रहा था जिससे पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच बनाई जा सके. लेकिन ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से इस बंदरगाह का विकास धीमी गति से हुआ.
29 सितंबर से हट जाएंगे चाबहार से सभी छूट
बता दें कि अमेरिका ने साल 2018 में इस परियोजना को प्रतिबंधों से छूट दी थी ताकि अफगानिस्तान को राहत और विकास कार्यों में मदद मिल सके. लेकिन अब ट्रंप प्रशासन ने यह छूट समाप्त कर दी है. 29 सितंबर 2025 से यह छूट हट जाएगी और इस बंदरगाह से जुड़े किसी भी लेन-देन पर Iran Freedom and Counter-Proliferation Act (IFCA) के तहत प्रतिबंध लागू हो सकते हैं.
भारत की कनेक्टिविटी रणनीति को लग सकता है झटका
चाबहार भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच का सबसे सुरक्षित और कारगर विकल्प था. पाकिस्तान की असहयोगी नीति के चलते भारत वहां सीधी सड़क और रेलमार्ग से नहीं पहुंच सकता. ऐसे में यदि अमेरिका द्वारा प्रतिबंध कड़े किए जाते हैं, तो भारत की कनेक्टिविटी रणनीति को गहरा झटका लगेगा.
चीन-पाकिस्तान की गिरफ्त में जा सकता है अफगानिस्तान
भारत के लिए चाबहार केवल एक बंदरगाह नहीं, बल्कि रणनीतिक विमर्श का केंद्र है. यह “उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा” (International North-South Transport Corridor) का भी अहम हिस्सा है, जो भारत को रूस और यूरोप तक पहुंचाने की क्षमता रखता है. ऐसे में भारत को यह स्पष्ट करना होगा कि चाबहार केवल ईरान का नहीं, बल्कि अफगानिस्तान पुनर्निर्माण और क्षेत्रीय स्थिरता का मुद्दा है. क्योंकि यदि भारत चाबहार से पीछे हटता है, तो अफगानिस्तान एक बार फिर चीन-पाकिस्तान की गिरफ्त में जा सकता है.
चाबहार भारत की भू-रणनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक
चाबहार केवल एक बंदरगाह नहीं, बल्कि भारत की भू-रणनीतिक स्वतंत्रता का प्रतीक है. यदि चाबहार को प्रतिबंधों की भेंट चढ़ने दिया गया, तो इसका सीधा फायदा चीन और पाकिस्तान को मिलेगा. वहीं अगर भारत कूटनीति और सामरिक चातुर्य का इस्तेमाल कर इस चुनौती का सामना करता है, तो यह संकट अवसर में भी बदल सकता है.
चीन-पाकिस्तान को होगा फायदा
यदि भारत चाबहार में पिछड़ता है, तो यह सीधे चीन और पाकिस्तान के लिए भू-रणनीतिक लाभ साबित होगा. क्योंकि चीन पहले ही पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को विकसित कर चुका है और “चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा” (CPEC) के जरिए उसे मध्य एशिया से जोड़ रहा है.
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