अमेरिका को लगा तगड़ा झटका, रूस के साथ मिलकर भारत अपने ही देश में बनाएगा यात्री विमान

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Civil Aviation Aircraft : वर्तमान में भारत-रूस संबंध और स्वदेशी एविएशन क्षेत्र में एक नया आयाम जुड़ने जा रहा है. जानकारी देते हुए बता दें कि स्वदेशी सरकारी एविएशन कंपनी HAL ने रूस के साथ सुखोई सुपरजेट (एसजे-100) यात्री विमान बनाने का करार किया है. बता दें कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के सीएमडी डीके सुनील के मौजूदगी में मॉस्को में इस एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए गए.

प्राप्‍त जानकारी के अनुसार HAL ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए बताया कि इन एसजे-100 (सुखोई सुपरजेट) विमानों का इस्तेमाल उड़ान स्कीम के तहत छोटी दूरी की कनेक्टिविटी के लिए किया जाएगा. फिलहाल इस मामले को लेकर एचएएल ने कुछ भी स्‍पष्‍ट नही किया है कि कितने विमानों का भारत में बनाने पर सहमति बनी है और कब से उत्पादन शुरू होगा, लेकिन एविएशन कंपनी ने भी बताया कि उड़ान स्कीम के तहत कम से कम भारत को 200 विमानों की जरूरत है.

सिविल एयरक्राफ्ट को लेकर रूस-भारत का पहला समझौता

बता दें कि टू-इन इंजन वाले एसजे-100 विमान को रूस की सरकारी कंपनी, पब्लिक ज्वाइंट स्टॉक कंपनी यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन (PHSC-UAC) बनाती है. प्राप्‍त जानकारी के मुताबिक, रूस में इस तरह के 200 विमानों को 16 कमर्शियल एयरलाइंस घरेलू उड़ानों के लिए इस्तेमाल करती है. ऐसे में एचएएल ने भारतीय वायुसेना के लिए रूसी लाइसेंस के जरिए करीब 250 सुखोई लड़ाकू विमान के साथ 600 मिग-21 फाइटर जेट का निर्माण देश में ही किया है. बता दें कि रूस से सिविल एयरक्राफ्ट के लिए अपने तरह का ये पहला समझौता है.

उड्डयन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर भारत

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, स्वदेशी लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस के अलावा एचएएल, लाइट कॉम्बेट हेलीकॉप्टर प्रचंड, एडवांस लाइट हेलिकॉप्टर (ALH) ध्रुव और एचटीटी (ट्रेनर) एयरक्राफ्ट बनाती है. बता दें कि ये सभी मिलिट्री एयरक्राफ्ट हैं. इसके साथ ही 1961 में एचएएल ने एवरो (एवीआरओ एचएस-748) यात्री विमान को भी बनाया था. लेकिन ये प्रोजेक्ट 1988 में बंद हो गया था.

इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत

इस दौरान इतिहास में एसजे-100 विमान का निर्माण भारतीय विमानन उद्योग के एक नए अध्याय की शुरुआत है. इतना ही नही बल्कि यह नागरिक उड्डयन क्षेत्र में ‘आत्मनिर्भर भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम है. जो कि विनिर्माण से निजी क्षेत्र को भी मजबूती मिलेगी साथ ही विमानन उद्योग में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे.

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