Srinagar: दिल्ली में लाल किला के पास विस्फोट के षड्यंत्र में लिप्त मौलवी इरफान अहमद वागे यूपी में सहारनपुर के देवबंद से ही जिहादी मानसिकता लेकर श्रीनगर पहुंचा था. वह कोरोना काल से ही श्रीनगर के नौगाम में मस्जिद का इमाम बन बैठा था और उसके कमरे से भी जैश के पोस्टर मिले. अधिकारियों के अनुसार मौलवी इरफान वर्ष 2017-18 के दौरान देवबंद के दारुल उलूम में चला गया और वहां से मुफ्ती बनकर श्रीनगर लौटा था.
युवाओं को कट्टरपंथ छोड़ सही राह पर चलने का पढ़ाता था पाठ
मौलवी इरफान को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने श्रीनगर में मिले जैश के पोस्टरों की जांच के सिलसिले में 18 अक्टूबर को शोपियां से गिरफ्तार किया था. मौलवी इरफान एक ओर प्रशासन और पुलिस के समक्ष बैठकों में स्थानीय युवाओं को कट्टरपंथ छोड़ सही राह पर चलने का पाठ पढ़ाता था. साथ ही आतंकी व जिहादी तत्वों से बचाने के लिए इस्लाम की व्याख्या करता था. वहीं दूसरी ओर गुपचुप सफेदपोश आतंकियों संग मिल देश को धमाकों से दहलाने का षड्यंत्र रच रहा था.
युवाओं को हिंसा छोड़ सही राह पर लाने के लिए करता था
उत्तर प्रदेश के देवबंद से मुफ्ती बनकर निकला इरफान मौलवियों की उस जमात में शामिल था, जिनका सहयोग प्रदेश प्रशासन वर्ष 2019 के बाद स्थानीय युवाओं को हिंसा छोड़ सही राह पर लाने के लिए करता था. पुलिस की बैठकों में आतंकी हिंसा की निंदा करने वाला मौलवी गुपचुप तरीके से स्थानीय युवाओं को जैश और अल-कायदा से जोड़ने के लिए उनके भीतर कट्टर जिहादी मानसिकता पैदा करने में लगा था.
वह देवबंद से ही जिहादी मानसिकता लेकर आया
उससे पूछताछ के दौरान पता चला है कि वह देवबंद से ही जिहादी मानसिकता लेकर आया था. वह कोरोना काल से ही इसी मस्जिद में काम कर रहा था और कुछ स्थानीय स्कूलों में भी इस्लाम पढ़ाता था. उसकी डॉ. मुजम्मिल से पहली मुलाकात वर्ष 2021 में शेर-ए-कश्मीर आयुर्विज्ञान संस्थान (सौरा) में हुई थी. उसके बाद से दोनों लगातार संपर्क में रहे हैं. वह अन्य सफेदपोश आतंकियों के सीधे संपर्क में भी था.
इस्लामिक विषयों पर ऑनलाइन लेक्चर भी देता था मौलवी
अधिकारियों ने बताया कि मौलवी इरफान इस्लामिक विषयों पर ऑनलाइन लेक्चर भी देता था. वह इतना शातिर था कि दिखावे के लिए सार्वजनिक तौर पर हमेशा आतंकी हिंसा की निंदा करता और कहता था कि इस्लाम में किसी इंसान के कत्ल की इजाजत नहीं है. वह कश्मीर में आतंक व अलगाववाद के नाम पर हिंसा का विरोध करते हुए कहता था कि यह जिहाद नहीं, यह इस्लाम के खिलाफ है. वह युवाओं को कट्टरपंथी ताकतों से बचाने, उन्हें आतंकी बनने से रोकने के लिए पुलिस की बैठकों में शामिल होता था. इसलिए उस पर कभी संदेह नहीं हुआ.
हमेशा हिंसा को गलत ठहराता था
नौगाम की नाइकबाग मस्जिद कमेटी के प्रधान फारूक अहमद ने कहा कि हमें भी कभी नहीं लगा कि मौलवी इरफान अहमद किसी गलत कार्य में लिप्त हो सकता है. वह यहां नमाज पढ़ाता था. वह जब कभी भी खुतबा देता था तो हमेशा हिंसा को गलत ठहराता था. वह कश्मीर में जिहाद का नारा देने वालों को कश्मीर का सबसे बड़ा दुश्मन बताता था और हमेशा सभी को आपसी सद्भाव के साथ रहने और सामाजिक बुराइयों से बचने की ताकीद करता था. वह अपने कमरे में भी किसी को नहीं आने देता था.
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