माता-पिता की सेवा से प्रसन्न होते हैं भगवान: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, कोई कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो, किन्तु यदि अपनी बुद्धि का उपयोग वह दूसरों को गिराने के लिए करता है, तो शास्त्र की दृष्टि में वह मंदमति ही है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। धर्म का हेतु क्या है? धर्म का हेतु है मोक्ष।
इसलिए अनीति से कमायें  नहीं और नीति से जो मिला है उसमें ममता न रखें। मेरा-मेरा न करें। धर्म का हेतु अर्थ नहीं है।धर्माचरण करो तो मोक्ष के लिये, मुक्ति के लिये, अर्थ के लिये नहीं। आजकल लोग धर्माचरण करते हैं कि अर्थ मिले। कोई ऐसा मंत्र बताओ कि पैसा-पैसा हो जाये। लेकिन यह गलत है धर्म का हेतु अर्थ नहीं। अर्थ का हेतु धर्म है।
आजकल जहां देखो धर्म की सेवा नहीं, धर्म का दोहन हो रहा है। धर्म की गाय को सब दुह रहे हैं, दूध पी जाना है सबको लेकिन यह गाय भूखी मर रही है। इसको चारा कोई नहीं डाल रहा है। धर्म की गाय दुबली पतली होकर मरने पर हुई है। लेकिन सबका ध्यान दोहने की ओर है।अब वृद्धा आश्रम बनते जा रहे हैं।
जिनके परिवार में कोई नहीं है उनके लिए ठीक भी है। माता-पिता की सेवा सर्वोपरि है, माता-पिता की सेवा से भगवान प्रसन्न होते हैं। माता-पिता की सेवा से आवश्यकता पड़ने पर हमें भी सेवा मिलती है। एक मां की गोद में सात-सात बच्चे पालकर बड़े हो जाते हैं लेकिन सात लड़कों की कोठी में एक मां के लिये कहीं जगह नहीं है। तो कैसा कृतघ्न है समाज?वृद्धाश्रम बनाना पड़े यह तो हमारे समाज की बीमारी का प्रतीक है।
वृद्धाश्रम बनाने वालों को वन्दन, क्योंकि वे सेवाकर रहे हैं। लेकिन वृद्धाश्रम की व्यवस्था करनी पड़े यह हमारी संस्कृति और समाज की बीमारी का प्रतीक है। सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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