जीवन की आवश्यकताओं को जुटाना कोई पाप नहीं: दिव्य मोरारी बापू 

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, अर्थ का हेतु धर्म है, काम नहीं, और काम का हेतु अच्छा भोजन, अच्छे कपड़े, अच्छा बंगला सब चाहिए। लेकिन उसका हेतु क्या है? उसका हेतु यह है कि जीवन चलता रहे, इन्द्रियों का विषय भोग नहीं। जीने के लिये खाना है, खाने के लिए जीना नहीं।
जीवन हमें इसलिये मिला है कि हम तत्व को जानने की इच्छा करें, तत्व को जाने। तत्व को वेदांती ब्रह्म कहते हैं, योगी परमात्मा कहते हैं, भक्त भगवान कहते हैं। उसको जानना यही जीवन का हेतु है। धर्म का हेतु मोक्ष है अर्थ नहीं। आजकल तो लोग धर्माचरण अर्थ के लिए करते हैं। भजते हैं कि हमें बंगला, मोटर, धन मिल जाये इसलिए पूजा पाठ करो।
अर्थ सिद्धि के लिए धर्म करते हैं। अर्थ से धर्म कमाने के लिए क्या करना है? तो कहते हैं अर्थ को परमार्थ में लगाना, परोपकार में लगाना, परहित में लगाना, स्कूल, कॉलेज में लगाना, अस्पताल, अन्नक्षेत्र बनवाये, मंदिर बनवायें। अर्थ को परमार्थ में लगाओ तो अर्थ से धर्म को प्राप्त करोगे। वही अर्थ का वास्तविक हेतु है, अर्थ का हेतु काम नहीं, धर्म है।
जीवन की आवश्यकताओं को जुटाना यह कोई पाप नहीं है, दोष नहीं है, लेकिन इसका हेतु है जीवन चलता रहे। मेरा वश चले, इसलिए पुत्रोत्पत्ति करें ! यह कोई दोष नहीं है। काम का हेतु है वंश चले। इसलिए पत्नी को धर्मपत्नी कहा गया है, काम पत्नी नहीं।
सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).
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