Jagannath Swami : शास्त्रों के अनुसार हमारे जीवन में ग्रहों की स्थिति हमारे सुख-दुख,सफलता-असफलता और अच्छे-बुरे परिणाम का कारण बनती है. बता दें कि जब ग्रह अशुभ स्थिति में आते हैं, तो ऐसे में समय में जीवन में रुकावट, तनाव और बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. प्राप्त जानकारी के अनुसार कथावाचक और आध्यात्मिक गुरु इंद्रेश उपाध्याय ने एक सत्संग कार्यक्रम में कुछ सरल उपायों के बारे में बताया है, जो इन्हें शांत करने में सहायक होते हैं.
ऐसे में महाराज जी कहना है कि अगर किसी व्यक्ति पर शनि की महादशा के साथ मंगल दोष या किसी भी तरह के अशुभ ग्रहों की स्थिति बनी हुई है तो, उसे नियमित रूप से जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने चाहिए. उनका कहना है कि इस स्थिति में आप दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो, महाप्रभु के दर्शन मात्र से ही आपके अशुभ ग्रह की स्थिति बेहतर होती चली जाएगी.
इस दौरान शास्त्रों में बताया गया है कि, महाप्रभु जगन्नाथ स्वामी के एक-एक अंग को अलग अलग देखने से ग्रह नक्षत्र में सुधार आता है. मान्यताओं के अनुसार महाप्रभु के दाहिने नेत्र को देखने से सूर्य की स्थिति में सुधार आता है.
इसके साथ ही बायां नेत्र चंद्रमा का प्रतीक है. जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि महाप्रभु की दोनों आंखें सूर्य चंद्रमा का प्रतीक है. उनकी नासिका (नाक) मंगल ग्रह है, जिन लोगों की कुंडली में मंगल दोष चल रहा है, उन्हें महाप्रभु की नाक को हमेशा देखना चाहिए.
उन्होंने ये भी बताया कि महाप्रभु के अधर यानी मुखमंडल को देखने से बुध की स्थिति में सुधार आता है. साथ ही जगन्नाथ स्वामी का तिलक गुरु का प्रतीक है. ऐसे में उनके तिलक का दर्शन करने से गुरु ग्रह मंगलकारी होता है. जबकि महाप्रभु के मुख के चारों कोने शुक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं.
महाप्रभु का काला बदन शनि का प्रतीक
बता दें कि महाप्रभु का काला बदन शनि का प्रतीक है. इस दौरान उनकी काली कांति को देखने से जीवन में शनि की अशुभता मंगलकारी होती है. ऐसे में जिन व्यक्तियों पर शनि की महादशा चल रही है, उन्हें मुख्य रूप से जगन्नाथ स्वामी के दर्शन करने चाहिए. महाप्रभु का स्वर्ण किरीट राहु का प्रतीक है.
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