बैंकों को ब्याज दर के प्रभाव का बेहतर आकलन करने की आवश्यकता: Report

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
मुख्य बैंकिंग मानकों जैसे एडवांस, जमा और शुद्ध ब्याज आय (NII) में रेपो रेट में बदलाव सबसे विश्वसनीय प्रीडिक्टर है, जो ऋण गतिविधियों को प्रभावित करते हैं. बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि बैंकों को ब्याज दर के प्रभाव का बेहतर आकलन करने की आवश्यकता है. बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (Boston Consulting Group) की एक स्टडी से पता चला है कि दरों में बदलाव का बैंकिंग प्रदर्शन पर पूरा प्रभाव दिखने में 12 से 24 महीने लगते हैं. क्योंकि, इसका प्रभाव न तत्काल होता है और न ही एक समान होता है.

बीसीजी के पार्टनर और निदेशक दीप नारायण मुखर्जी ने क्‍या कहा ?

बीसीजी के पार्टनर और निदेशक दीप नारायण मुखर्जी (Deep Narayan Mukherjee) ने कहा, अक्सर ऐसी नीतिगत दरें अर्थव्यवस्था को शांत करने और मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए बढ़ाई जाती हैं. उनहोंने आगे कहा, हालांकि दरें सक्षमकर्ता के रूप में कार्य करती हैं, लेकिन ऋण का वास्तविक विस्तार उधारकर्ताओं की भावना और ऋणदाताओं की जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है. स्टडी के मुताबिक, भले ही दरों में बदलाव सभी शेड्यूल्ड कमर्शियल बैंक (एससीबी) को प्रभावित करते हैं बावजूद इसके रेपो दर सभी मानकों में सबसे सटीक प्रीडिक्टर है.

पीएसबी में देखी गई 1.45% की तीव्र वृद्धि

रिपोर्ट में कहा गया है कि रेपो दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि से एससीबी की शुद्ध ब्याज आय में 1.11% की वृद्धि हुई, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में 1.45% की तीव्र वृद्धि देखी गई. रेपो दर में बदलावों को लेकर निजी बैंकों की तुलना में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक (पीएसबी) ने अधिक प्रतिक्रिया दर्ज करवाई. स्टडी में कहा गया है कि कम ब्याज दरें हमेशा अधिक उधार में तब्दील नहीं होती हैं. दरें सुविधा प्रदान करती हैं, लेकिन उधारकर्ताओं की भावना और उधारदाताओं की जोखिम सहनशीलता अंततः यह निर्धारित करती है कि ऋण का विस्तार किया जाए या नहीं.

2022 से 2023 तक ऋण में देखी गई मजबूत वृद्धि

उदाहरण के लिए, ब्याज दरों में वृद्धि के बावजूद, 2022 से 2023 तक ऋण में मजबूत वृद्धि देखी गई. इसी प्रकार, यह पाया गया कि रेपो दर में 50 आधार अंकों की वृद्धि के साथ एससीबी के अग्रिमों में 1.16% की वृद्धि हुई और इसी तरह की कटौती के साथ 1.25% की कमी आई. रिपोर्ट में कहा गया है, एकतरफा, पूर्वानुमानित ब्याज दर चक्रों का युग शायद समाप्त हो गया है. भू-राजनीतिक व्यवधानों और घरेलू बाजार में बदलावों के कारण परिदृश्य में आए बदलाव के साथ, भारतीय बैंक अब पारंपरिक नियोजन मॉडलों पर निर्भर नहीं रह सकते. बैंकों को अपने व्यावसायिक अनुमानों में ब्याज दर संवेदनशीलता को अधिक स्पष्ट रूप से शामिल करने की आवश्यकता है.

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