भारतीय घरेलू शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों की भागीदारी एक बार फिर बढ़ने के संकेत दे रही है और लंबी अवधि के लिहाज़ से बाजार का रुख सकारात्मक बना हुआ है. शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार, रुपए में जारी कमजोरी के चलते विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) फिलहाल भारतीय बाजार से दूरी बनाए रख सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि मुद्रा में स्थिरता आने के बाद ही एफपीआई की वापसी संभव है.
अस्थायी उतार-चढ़ाव के बावजूद घरेलू निवेशकों का भरोसा मजबूत
हालांकि, रिपोर्ट के अनुसार, यह एक अस्थायी उतार-चढ़ाव है और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के लिए घरेलू निवेशकों का प्रवाह मजबूत रहेगा. कम ब्याज दरें और डेट म्यूचुअल फंड्स पर टैक्स लाभ का हटना, निवेशकों के लिए फिक्स्ड इनकम को आकर्षक नहीं बनाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक बाजार में कोई गहरा और व्यापक सुधार नहीं आता (जो हमारे विचार से असंभव है), हम घरेलू निवेशकों से शेयर बाजार में लगातार और स्थिर निवेश की उम्मीद करते हैं.
घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी 30% पर पहुंची
पिछले एक साल में भारतीय निवेशकों ने शेयर बाजार में अपनी बचत की हिस्सेदारी को नौ वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंचाते हुए 17% बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर दिया है (मार्च 2016 से सितंबर 2024 की अवधि में). हालांकि इस दौरान बाजार में उतार-चढ़ाव देखने को मिला, लेकिन रिपोर्ट का मानना है कि यह स्थिति अस्थायी है. अनुमान है कि अगले दस वर्षों में घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी बढ़कर 45% तक पहुंच सकती है. इस बदलाव से बाजार की स्थिरता मजबूत होगी, क्योंकि घरेलू निवेशकों की बढ़ती भागीदारी एफपीआई की बिकवाली से पैदा होने वाली अस्थिरता को काफी हद तक संतुलित करेगी.
एफपीआई का फोकस बड़े और वित्तीय शेयरों पर
एफपीआई और घरेलू निवेशकों के निवेश पर अध्ययन से पता चला कि एफपीआई ज्यादातर बड़े शेयरों में निवेश कर रहे हैं, खासकर वित्तीय सेक्टर में. साथ ही, रिपोर्ट ने यह भी बताया कि घरेलू बचत में सोने की हिस्सेदारी पिछले 12 महीनों में 855 बीपीएस बढ़कर 45.6% गई है, जिसका मुख्य कारण मासिक बढ़ोतरी है. रिपोर्ट के अनुसार, इसका कोई बड़ा नकारात्मक असर नजर नहीं आता, क्योंकि उपलब्ध आंकड़े यह संकेत नहीं देते कि इससे उपभोग के स्तर में कोई उल्लेखनीय बदलाव होगा. साथ ही, रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि सोने की कीमतों और शेयर बाजार में निवेश के प्रवाह के बीच अब तक कोई ठोस या ऐतिहासिक संबंध नहीं पाया गया है.

