भारतीय कारीगरों के लिए GST 2.0 बड़ा वरदान, उत्पादों की बढ़ी बिक्री

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)

अगली पीढ़ी के जीएसटी सुधार भारतीय कारीगरों के लिए वरदान साबित हो रहे हैं, जिससे उनके उत्पादों की बिक्री में वृद्धि और आय में बढ़ोतरी हुई है और वे फैक्ट्री उत्पादों के साथ प्रभावी प्रतिस्पर्धा कर पा रहे हैं. जीएसटी 2.0 के तहत लकड़ी की नक्काशी, टेराकोटा, जूट हैंडबैग, कपड़े और चमड़े के सामान जैसे कई हैंडीक्राफ्ट उत्पादों पर टैक्स में कमी की गई है. असम का मूगा रेशम उद्योग, जो मुख्य रूप से सुआलकुची (कामरूप), लखीमपुर, धेमाजी और जोरहाट जिलों में केंद्रित है, राज्य भर के अन्य रेशम समूहों के साथ मिलकर महिला बुनकरों की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ा रहा है.

बुनकरों को मिलेगी राहत

हैंडलूम और हैंडीक्राफ्ट वस्तुओं पर 5% जीएसटी की कम दर से बुनकरों को राहत मिलेगी और इससे वे प्रतिस्पर्धी बाजारों में अपने उत्पाद बेचकर बेहतर मार्जिन कमा सकते हैं. इससे निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। असम के पूरे हैंडलूम क्षेत्र को जीएसटी सुधारों से लाभ होगा. 12.83 लाख से ज्यादा बुनकरों और लगभग 12.46 लाख करघों वाले राज्य में इसका प्रभाव दूरगामी होगा. हैंडलूम और क्राफ्ट पर जीएसटी दर में कटौती से असम जापी, अशारिकंडी टेराकोटा, मिशिंग हैंडलूम, पानी मेटेका और बिहू ढोल सहित अन्य उद्योगों को भी लाभ होगा.

पारंपरिक क्राफ्ट और हैंडलूम के लिए प्रसिद्ध पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल लंबे समय से पारंपरिक क्राफ्ट और हैंडलूम के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें बिष्णुपुर के टेराकोटा मंदिर और नक्शी कंठ की जटिल कढ़ाई शामिल हैं. जीएसटी दर को 12 प्रतिशत से घटाकर 5% करने से इस क्षेत्र के कारीगरों को सीधे लाभ मिलने की उम्मीद है. हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध हैंडलूम उत्पादों, जैसे शॉल और ऊनी वस्त्रों को भी जीएसटी में कटौती से बढ़ावा मिलने की संभावना है. कुल्लू घाटी में 3,000 से अधिक बुनकर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से चमकीले पैटर्न वाले, जीआई-टैग वाले कुल्लू शॉल बनाते हैं. वहीं, चंबा रुमाल, एक जीआई-टैग वाला लघु हस्त-कढ़ाई वाला कपड़ा, मुख्य रूप से चंबा जिले की महिला कारीगरों द्वारा तैयार किया जाता है.

बिक्री में होगी वृद्धि

इन रूमालों पर जीएसटी घटाकर 5% कर दिए जाने के कारण इनकी मांग में वृद्धि होगी. चंबा के पारंपरिक चमड़े के चप्पल भी जीआई-टैग्ड उत्पाद हैं, जिनका उत्पादन सैकड़ों छोटी कुटीर शिल्प इकाइयों द्वारा किया जाता है. जीएसटी में कटौती से इन स्वदेशी चप्पलों की कीमतें मशीन-निर्मित जूतों की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगी, जिससे बिक्री में वृद्धि होगी और कारीगर अपने मार्जिन को बढ़ाने में सक्षम होंगे.

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