भारत में एलपीजी खपत में 44% वृद्धि | FY25 तक 31.3 MMT तक पहुँची

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
भारत में एलपीजी की खपत पिछले आठ वर्षों में 44 प्रतिशत बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 31.3 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) तक पहुँच गई है, जबकि वित्त वर्ष 2017 में यह 21.6 एमएमटी थी. यह जानकारी बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में साझा की गई. रिपोर्ट के अनुसार, परिवारों द्वारा अधिक रिफिल भरवाने और एलपीजी की उपलब्धता में वृद्धि के कारण मांग में निरंतर इजाफा हुआ है और अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 तक यह 33–34 एमएमटी तक पहुँच सकती है.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के लाभार्थियों की ओर से भराए जाने वाले औसत घरेलू एलपीजी रिफिल की संख्या वित्त वर्ष 17 में 3.9 सिलेंडर से बढ़कर FY25 में 4.5 प्रति वर्ष तक पहुंच गई है. इसकी वजह कम दाम, बेहतर डिलीवरी नेटवर्क और रोजाना खाना पकाने की ऊर्जा जरूरतों के लिए एलपीजी पर बढ़ती निर्भरता है. गैर- उज्ज्वला लाभार्थियों की ओर से हर साल 6-7 सिलेंडर प्रति वर्ष भरवाए जा रहे हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि वाणिज्यिक और औद्योगिक उपयोग के लिए एलपीजी की हिस्सेदारी, जो वित्त वर्ष 2017 में कुल मांग का 10 प्रतिशत थी, वित्त वर्ष 2025 में बढ़कर 16 प्रतिशत हो गई है. इसका कारण फूड सर्विसेज, इंस्टीट्यूशनल किचन और छोटे विनिर्माण क्लस्टर्स में एलपीजी के व्यापक उपयोग से मांग आधार का विस्तार है. मांग में वृद्धि के साथ ही देश का वार्षिक एलपीजी उत्पादन भी बढ़ा, जो वित्त वर्ष 2025 में 12.8 एमएमटी तक पहुँच गया, जबकि वित्त वर्ष 2017 में यह 11.2 एमएमटी था.
रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी एलपीजी मांग को पूरा करने के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है. देश की कुल मांग का 55-60 प्रतिशत आयात से पूरी होती है. हाल ही में भारत-अमेरिका के बीच हुए 2.2 मिलियन टन प्रति वर्ष आपूर्ति के एलपीजी समझौता से देश की आपूर्ति में विविधता आने की उम्मीद है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत ऐतिहासिक रूप से अपने तेल आपूर्ति स्रोतों के लिए मध्यपूर्वी देशों पर निर्भर रहा है.
इस डील के रणनीतिक लाभ तो स्पष्ट हैं, लेकिन फ्रेट से जुड़ी लैंडेड कॉस्ट की संवेदनशीलता भविष्य में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकती है.

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