भारतीय कंपनियों का पूंजीगत व्यय 800 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना

Shivam
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Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
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भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र का पूंजीगत व्यय अगले पांच वर्षों में दोगुना होकर करीब 800 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है. मंगलवार को जारी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस वृद्धि का प्रमुख कारण कंपनियों की आय और मुनाफे में हो रही मजबूती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले वर्षों में भारतीय कंपनियों की वृद्धि दर वैसी ही हो सकती है जैसी वर्ष 2000 के दशक में चीन की कॉरपोरेट कंपनियों की देखी गई थी. इसके साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि देश की प्रमुख कंपनियों की आमदनी में उल्लेखनीय इजाफा होगा.

भारतीय कॉर्पोरेट्स का बढ़ेगा राजस्व आधार

एसएंडपी का आकलन है कि वित्त वर्ष 2026 से 2030 के बीच भारत का कुल कॉर्पोरेट कैपेक्स (Capital Expenditure) लगभग 800 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. इस तेजी का मुख्य कारण इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में हो रहा व्यापक निवेश बताया गया है. रिपोर्ट में आगे कहा गया कि एडवांस रिसर्च और विकास के लिए वित्त वर्ष 2031 से 2035 तक 1 ट्रिलियन डॉलर का अतिरिक्त निवेश होने की उम्मीद है. एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स की क्रेडिट एनालिस्ट नील गोपालकृष्णन ने कहा, इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार, राजनीतिक स्थिरता और कॉर्पोरेट बैलेंस शीट में सुधार, बड़ी विस्तार योजनाओं को बढ़ावा दे रहे हैं जिससे भारतीय कॉर्पोरेट्स का राजस्व आधार बढ़ेगा.

सहायक सरकारी नीतियां मददगार हो रही साबित

उन्होंने आगे कहा, सहायक सरकारी नीतियां मददगार साबित हो रही हैं जिसमें घरेलू आत्मनिर्भरता, अधिक निर्यात और सप्लाई-चेन इकोसिस्टम के विकास पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है. गोपालकृष्णन ने कहा, हमारा आधारभूत दृष्टिकोण यह है कि भारत की विकास गति मजबूत बनी रहेगी और इसका औद्योगिक आधार, सप्लाई-चेन और अधिक गहरी एवं कुशल होंगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि ये कारक उस गति के समान हैं, जिसने 2000 के दशक में चीन के कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए वर्षों तक तेजी से विस्तार और बाजार में बढ़त हासिल की. 2000 के दशक में चीन का विस्तार कम व्यापार बाधाओं, महत्वपूर्ण विदेशी निवेश और दोहरे अंकों की जीडीपी वृद्धि से प्रेरित था.

एसएंडपी ग्लोबल ने कहा, भारतीय कंपनियों को अपने उच्च-विकास चरण के दौरान अपनी चीनी समकक्षों की तुलना में अधिक कठिन वित्तीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि, ऐसी परिस्थितियां भारतीय कंपनियों को कई चीनी कॉरपोरेट क्षेत्रों की तरह बड़े ऋण संचय से बचने में मदद कर सकती हैं.

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