भारत का हाईवे टोल राजस्व इस साल जनवरी से सितंबर 2025 के बीच सालाना आधार पर 16% बढ़कर ₹49,193 करोड़ पर पहुंच गया है. इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण वाहन यातायात में बढ़ोतरी और टोल दरों में किए गए संशोधन बताए जा रहे हैं. एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, समीक्षा अवधि में टोल भुगतान करने वाले वाहनों की संख्या 12% बढ़कर 26,864 लाख तक पहुंच गई. ICRA एनालिटिक्स की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि राष्ट्रीय स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन वर्ष 2024 में ₹57,940 करोड़ के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में करीब 11% की वृद्धि को दर्शाता है.
सालाना आधार पर 7% की वृद्धि
रिपोर्ट के अनुसार, टोल देने वाले लेनदेन की संख्या बढ़कर 2024 में 32,515 लाख हो गई है, जो कि 2023 में 30,383 लाख थी. इसमें सालाना आधार पर 7% की वृद्धि देखने को मिली है. पिछले दो वर्षों में ट्रैफिक की वॉल्यूम में जोरदार वृद्धि हुई है, लेकिन आईसीआरए ने बताया कि राजस्व में वृद्धि वॉल्यूम की तुलना में अधिक तेज रही है, जिसका आंशिक कारण भारी वाहनों की अधिक हिस्सेदारी और संशोधित यूजर फीस है. रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रीय गलियारों ने लगातार देश के कुल राष्ट्रीय टोल राजस्व में आधे से अधिक योगदान दिया है.
लगभग 30% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर रहा पश्चिम भारत
जनवरी से सितंबर 2025 की अवधि में, पश्चिम भारत लगभग 30% हिस्सेदारी के साथ शीर्ष पर रहा, जबकि दक्षिण भारत ने 25% और उत्तर भारत ने 23% का योगदान दिया. ICRA ने बताया कि पूर्वी और मध्य भारत मिलकर कुल टोल कलेक्शन में करीब 25% हिस्सेदारी रखते हैं, जो देशभर में संतुलित क्षेत्रीय विकास और स्थिर ट्रैफिक वितरण को दर्शाता है. ICRA एनालिटिक्स ने कहा कि पूर्व, मध्य और पश्चिम भारत माल-केंद्रित क्षेत्र हैं, जहां टोल ट्रैफिक में वाणिज्यिक वाहनों की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से अधिक है.
मध्य भारत में एनएच-44, एनएच-47 और एनएच-52 जैसे गलियारे लंबी दूरी के माल और बढ़ते इंटर-सिटी पैसेंजर ट्रैफिक दोनों को वहन करते हैं. इसके विपरीत, उत्तर और दक्षिण भारत अभी भी पैसेंजर केंद्रित हैं, जहां कारों और जीपों की टोल लेनदेन में हिस्सेदारी 65-70 प्रतिशत है.

