Screen Time Before Bed: रात को मोबाइल या लैपटॉप देखना पड़ सकता है भारी, जानिए क्यों ?

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
Screen Time Before Bed: आज के डिजिटल युग में सोने से पहले मोबाइल फोन, टैबलेट या टीवी स्क्रीन पर समय बिताना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया है. रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे सोशल मीडिया स्क्रॉल करना, वेब सीरीज़ देखना या ई-मेल चेक करना अब एक सामान्य आदत बन चुकी है. कई लोग इसे दिनभर की थकान मिटाने या रिलैक्स करने का तरीका मानते हैं, लेकिन वे इस आदत के पीछे छिपे खतरों से पूरी तरह अनजान होते हैं.

वैज्ञानिक शोधों और नींद विशेषज्ञों का मानना है कि सोने से पहले स्क्रीन देखना न केवल आपकी नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि इसके कारण तनाव, चिड़चिड़ापन, हार्मोनल असंतुलन और आंखों की समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं. विशेष रूप से ब्लू लाइट (नीली रोशनी) हमारे स्लीप साइकिल को बिगाड़ देती है, जिससे शरीर की प्राकृतिक जैविक घड़ी (Circadian Rhythm) गड़बड़ा जाती है. इस लेख में हम जानेंगे कि सोने से ठीक पहले स्क्रीन पर समय बिताने की आदत सेहत के लिए क्यों हानिकारक है और इससे बचने के लिए कौन-से आसान और असरदार उपाय अपनाए जा सकते हैं.

💤 नींद में खलल डालती है स्क्रीन की ‘ब्लू लाइट’

सोने से पहले मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप जैसी डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल आपकी नींद की गुणवत्ता को सीधे प्रभावित कर सकता है. इन डिवाइसेज से निकलने वाली नीली रोशनी (Blue Light) हमारे शरीर की जैविक घड़ी को गड़बड़ा देती है. यह रोशनी दिमाग को यह भ्रम देती है कि अभी दिन का समय है, जिससे मेलाटोनिन नामक नींद लाने वाले हार्मोन का उत्पादन कम हो जाता है. मेलाटोनिन वह हार्मोन है जो शरीर को विश्राम की अवस्था में लाकर नींद के लिए तैयार करता है. जब इसका स्तर घटता है, तो नींद आने में देरी, रात में बार-बार जागना और नींद की गुणवत्ता में गिरावट जैसी समस्याएं पैदा होती हैं. इसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति अगली सुबह थकान, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता की कमी महसूस कर सकता है.

😴 देर रात स्क्रीन देखने की आदत नींद की गुणवत्ता पर गहरा डालती है असर

देर रात तक मोबाइल या अन्य स्क्रीन देखने की आदत केवल नींद आने में देरी ही नहीं करती, बल्कि नींद की गहराई और गुणवत्ता पर भी नकारात्मक असर डालती है. भले ही आप किसी समय पर सो जाएं, लेकिन दिमाग पूरी तरह शांत नहीं हो पाता. इससे नींद बार-बार टूटती है और आप डीप स्लीप यानी गहरी नींद के जरूरी चरणों तक नहीं पहुंच पाते. इस अधूरी और हल्की नींद के चलते सुबह उठने पर व्यक्ति खुद को थका हुआ, अनफ्रेश और चिड़चिड़ा महसूस करता है. यही नहीं, यह स्थिति धीरे-धीरे ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और दैनिक प्रोडक्टिविटी को भी प्रभावित करने लगती है, जिससे मानसिक थकान और तनाव की आशंका बढ़ जाती है.

👁️ आंखों और दिमाग पर बढ़ता दबाव

रात को सोने से ठीक पहले अंधेरे में मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप स्क्रीन देखना आंखों पर अत्यधिक तनाव डालता है. इससे आंखों में सूखापन, जलन, भारीपन और कभी-कभी धुंधलापन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं. यह स्थिति ‘डिजिटल आई स्ट्रेन’ (Digital Eye Strain) के रूप में जानी जाती है, जो आजकल तेजी से आम होती जा रही है. सिर्फ आंखें ही नहीं, बल्कि लगातार स्क्रीन पर दिखने वाली सूचनाएं और सोशल मीडिया की तुलनात्मक या नकारात्मक पोस्ट मस्तिष्क पर तनाव और मानसिक थकान का कारण बन सकती हैं. यह मानसिक दबाव धीरे-धीरे बेचैनी, चिंता (Anxiety) और यहां तक कि नींद की गंभीर समस्याओं को भी जन्म दे सकता है.

🧠 नींद की कमी से बढ़ता है वज़न और सेहत पर पड़ता है असर

लगातार कम या अधूरी नींद न केवल मानसिक थकावट का कारण बनती है, बल्कि यह शरीर में कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म देती है. नींद की कमी शरीर में भूख और तृप्ति से जुड़े हार्मोन– लेप्टिन और घ्रेलिन के संतुलन को बिगाड़ देती है, जिससे क्रेविंग्स बढ़ती हैं और वज़न तेजी से बढ़ सकता है. इतना ही नहीं, खराब नींद का सीधा संबंध हृदय रोग, टाइप 2 डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से भी जोड़ा गया है. विशेषज्ञ मानते हैं कि गहरी और पर्याप्त नींद न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बेहद ज़रूरी है.

🌙 बेहतर नींद के लिए अपनाएं ये हेल्दी आदतें

  • Bedtime screen time limit करें.
  • सोने से कम से कम 1 घंटे पहले सभी स्क्रीन बंद करें.
  • दिन में screen breaks लें.
  • Digital detox को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं.
नोट: यह लेख विभिन्न मेडिकल स्टडीज़, रिसर्च रिपोर्ट्स और विशेषज्ञों की राय पर आधारित जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है. इसमें दी गई जानकारी केवल जनरल अवेयरनेस के लिए है. किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए डॉक्टर की सलाह लेना आवश्यक है.
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