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यूनाइटेड किंगडम की राजधानी लंदन स्थित ऑक्सफोर्ड यूनियन (Oxford Union) में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस बी.आर. गवई (BR Gavai) ने “From Representation to Realization: Embodying the Constitution’s Promise” विषय पर प्रेरक संबोधन दिया. अपने संबोधन में उन्होंने भारतीय संविधान को सामाजिक क्रांति का प्रतीक बताते हुए, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों और अन्य वंचित समुदायों के लिए इसके महत्व को रेखांकित किया.
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने व्यक्तिगत सफर और डॉ. बी.आर. आंबेडकर की दूरदर्शिता को केंद्र में रखकर संविधान की समावेशी भावना को जीवंत किया. उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान केवल कानूनी या राजनीतिक ढांचा नहीं, बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज है, जो असमानता, जातिगत भेदभाव और गरीबी जैसी कड़वी सच्चाइयों का सामना करता है. यह वंचितों को आवाज, सम्मान और समानता प्रदान करता है.
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने जीवन के उदाहरण से समझाया कि कैसे एक नगरपालिका स्कूल से पढ़ा व्यक्ति देश का मुख्य न्यायाधीश बन सकता है. संविधान ने उन्हें और लाखों अन्य को यह विश्वास दिलाया कि वे समाज के हर क्षेत्र में बराबरी का हक रखते हैं.
जस्टिस बी.आर. गवई ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर को श्रद्धांजलि
जस्टिस बी.आर. गवई ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर को श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने संविधान सभा में वंचित समुदायों की आवाज को शामिल किया. आंबेडकर ने प्रतिनिधित्व को केवल सीटों के आवंटन तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे सामाजिक और राजनीतिक सशक्तीकरण का साधन बनाया. उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों जैसे आरक्षण और सकारात्मक कार्रवाई को सामाजिक लोकतंत्र का आधार बताया. जस्टिस बी.आर. गवई ने आंबेडकर के इस कथन को उद्धृत किया कि राजनीतिक लोकतंत्र तभी टिकेगा, जब सामाजिक लोकतंत्र उसका आधार बने.
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का किया उल्लेख
जस्टिस बी.आर. गवई ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख किया, जैसे NALSA v. Union of India (2014), जिसने ट्रांसजेंडर समुदाय को आरक्षण का अधिकार दिया, और Babita Puniya (2020), जिसने महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन प्रदान किया. हाल ही में अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण को मंजूरी देने वाले फैसले से सबसे वंचित समूहों को न्याय सुनिश्चित हुआ. ये निर्णय संविधान की समानता की अवधारणा को मजबूत करते हैं.
जस्टिस बी.आर. गवई ने पिछले वर्ष संसद द्वारा पारित संवैधानिक संशोधन का स्वागत किया, जिसने संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण को मंजूरी दी. उन्होंने कहा कि यह कदम संविधान की समावेशी भावना को और गहरा करता है. साथ ही, दिव्यांगजनों के लिए उचित समायोजन और उनके शासन में एकीकरण पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों को भी रेखांकित किया.
जस्टिस बी.आर. गवई ने अपने संबोधन के अंत में गायत्री चक्रवर्ती स्पिवक के प्रश्न “क्या सबाल्टर्न बोल सकता है?” का जिक्र करते हुए कहा कि सबाल्टर्न न केवल बोल रहा है, बल्कि उसकी आवाज को सुनने की जरूरत है. उन्होंने भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज बताया, जो 75 वर्षों बाद भी समानता और न्याय की खोज को प्रेरित करता है.