भारत में तेजी से बढ़ रही अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की खपत, मोटापा और मधुमेह के मामलों में भी हो रही वृद्धि

Shivam
Reporter The Printlines (Part of Bharat Express News Network)
भारत में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की खपत तेज़ी से बढ़ रही है, जिसके कारण लोगों की भोजन संबंधी आदतों में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है. इसका परिणाम यह है कि मोटापा और मधुमेह के मामलों में भी वृद्धि हो रही है, जिससे जनस्वास्थ्य लगातार प्रभावित हो रहा है. बुधवार को द लैंसेट में प्रकाशित तीन शोध-पत्रों में इस बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है. यूपीएफ वे खाद्य पदार्थ होते हैं जिनमें वसा, चीनी और नमक की मात्रा अत्यधिक होती है. इनमें स्टेबलाइज़र, इमल्सीफायर, रंग, फ्लेवर जैसे कई कृत्रिम और संभावित रूप से हानिकारक तत्व मिलाए जाते हैं. ऐसे खाद्य पदार्थ मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज, हृदय रोग, अवसाद और समय से पहले मृत्यु जैसे जोखिमों को बढ़ाने से जुड़े पाए गए हैं.
43 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए शोधपत्रों में बताया गया है कि भारत में यूपीएफ की खुदरा बिक्री 2006 में 0.9 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2019 में लगभग 38 बिलियन डॉलर हो गई. यानी इन 13 सालों में इसकी बिक्री करीब 40 गुना बढ़ी है. अब खुदरा दुकानों की अलमारियों पर पहले से पैक किए गए खाद्य और पेय पदार्थ, जैसे नमकीन, नूडल्स, बिस्कुट, मीठे पेय, चिप्स और नाश्ते के अनाज की भरमार है. इनका प्रचार-प्रसार विज्ञापनों के जरिए बच्चों और युवाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहा है. अध्ययन में पता चला कि भारत में इसके कारण पुरुषों में मोटापे का प्रतिशत 12 फीसद से बढ़कर 23 फीसद हो गया है, जबकि महिलाओं में यह लगभग 15 फीसद से बढ़कर 24 फीसद हो गया है.
इस श्रृंखला में यूपीएफ कंपनियों द्वारा उपभोग बढ़ाने के लिए अपनाई जा रही आक्रामक मार्केटिंग रणनीतियों और विज्ञापन अभियानों पर विस्तार से चर्चा की गई है. बाल रोग विशेषज्ञ और शोधपत्रों के सह-लेखक डॉ. अरुण गुप्ता का कहना है कि वर्तमान नियम ऐसे विपणन को नियंत्रित करने में प्रभावी साबित नहीं हो रहे हैं. उनके अनुसार भारत को तुरंत कदम उठाकर यूपीएफ की खपत कम करनी चाहिए और आने वाले वर्षों में मोटापा व मधुमेह पर लगाम लगाने का लक्ष्य तय करना चाहिए. चूँकि भारत में यूपीएफ की बिक्री तेज़ी से बढ़ रही है और इसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.
लेखकों ने यूपीएफ से निपटने और दुनिया भर में लोगों की खाने की आदतें सुधारने के लिए तुरंत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य कदम उठाने का आग्रह किया. लेखकों ने कहा कि केवल उपभोक्ता के व्यवहार पर भरोसा करने की बजाय यूपीएफ के उत्पादन, विपणन और खपत को कम करने के लिए समन्वित नीतियों की जरूरत है. साथ ही, उन्होंने स्वस्थ भोजन तक सभी की पहुंच बेहतर बनाने की भी मांग की. पीएचएफआई यूनिवर्सिटी ऑफ पब्लिक हेल्थ साइंसेज के चांसलर प्रो. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा, भारत को यूपीएफ के उत्पादन, विपणन और उनके घटकों की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कड़े नियम अपनाने की जरूरत है.
पैकेट के सामने दिए जाने वाले चेतावनी लेबल में उपभोक्ताओं को नमक, चीनी और वसा के हानिकारक स्तरों की स्पष्ट जानकारी मिलनी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि यूपीएफ को आकर्षक या आदत बनाने वाला दिखाने वाले विज्ञापन कई तरह की बीमारियों को बढ़ावा दे सकते हैं. इसलिए इन विज्ञापनों और प्रायोजनों पर नियंत्रण बेहद जरूरी है, खासकर तब जब सेलिब्रिटी प्रमोशन का प्रभाव बहुत व्यापक होता है.
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