फर्जी मुठभेड़ में पंजाब पुलिस के पूर्व एसएसपी-डीएसपी समेत पांच पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद, पीड़ित परिवार को 32 साल बाद मिला न्याय

Punjab: मोहाली की सीबीआई अदालत ने सोमवार को फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी पंजाब पुलिस के पूर्व एसएसपी और डीएसपी सहित पांच पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. पंजाब के तरनतारन में वर्ष 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में ये सभी पाए गए थे. अदालत में उपस्थित परिवार के सदस्यों ने कहा कि घटना के 32 साल बाद उन्हे न्याय मिला है.

आपराधिक साजिश,  हत्या, रिकॉर्ड नष्ट करने और फर्जीवाड़ा के आरोप

पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, डीएसपी दविंदर सिंह, एएसआई गुलबर्ग सिंह और एएसआई रघबीर सिंह सभी सेवानिवृत्त पर आपराधिक साजिश, हत्या, रिकॉर्ड नष्ट करने और फर्जीवाड़ा करने के आरोप है. शुक्रवार को दोषी पाया गया था. सोमवार को उक्त दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है।

2010-21 की अवधि के दौरान रुकी रही सुनवाई

पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने 2002 में भूपिंदरजीत सिंह डीएसपी गोइंदवाल, इंस्पेक्टर के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था. गुरदेव सिंह एसएचओ सरहाली, एसआई ज्ञान चंद, एएसआई देविंदर सिंह, एएसआई गुलबर्ग सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह, एसएचओ थाना वेरोवाल, एएसआई जगीर सिंह, एएसआई रघुबीर सिंह, एचसी मोहिंदर सिंह, एचसी अरूर सिंह को नामजद किया गया. लेकिन 2010-21 की अवधि के दौरान इस मामले की सुनवाई रुकी रही और इस अवधि के दौरान पांच आरोपियों की मृत्यु हो गई.

देरी से सुनवाई के दौरान 36 गवाहों की भी मृत्यु हो गई

वेरका ने यह भी बताया कि सीबीआई ने इस मामले में 67 गवाहों का हवाला दिया था लेकिन दुर्भाग्य से देरी से सुनवाई के दौरान 36 गवाहों की भी मृत्यु हो गई और इस मामले में केवल 28 ने गवाही दी. अंत में शुक्रवार को पांच आरोपियों भूपिंदरजीत, दविंदर, सूबा, गुलबर्ग और रघबीर सिंह को यूएस 120 बीए 120.बी आर/डब्ल्यू 302 आईपीसीए 120 बी आरध्डब्ल्यू 201 आईपीसी और 120 बी आरध्डब्ल्यू 218 आईपीसी के लिए अपराध करने का दोषी ठहराया गया और दोषी को हिरासत में ले लिया गया और जेल भेज दिया गया और अब सोमवार को सजा सुनाई गई.

विशेष न्यायाधीश ने 32 साल पुराने मामले में फैसला सुनाया

शुक्रवार को सीबीआई पंजाब मोहाली के विशेष न्यायाधीश बलजिंदर सिंह सरा की अदालत ने 32 साल पुराने मामले में फैसला सुनाया, जिसमें एक ही गांव यानी रानी विल्लाह के तीन एसपीओ सहित सात युवकों को तरनतारन पुलिस द्वारा दो मुठभेड़ों में उठा लिया गया. उन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया गयाए प्रताड़ित किया गया और फिर उन्हें मारा हुआ दिखाया गया.

शव को अज्ञात और लावारिस के रूप में करा दिया था अंतिम संस्कार

इस मामले की जांच सीबीआई ने पंजाब पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 12 दिसंबर 1996 को पारित आदेशों पर की थी. 1997 में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच दर्ज की और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की और फिर 1999 में, नरिंदर कौर यानी एसपीओ शिंदर सिंह की पत्नी, गांव रानीविल्लाह के बयान पर नियमित मामला दर्ज किया, जिसे मुठभेड़ में मारा गया दिखाया गया था. उसके शव को अज्ञात और लावारिस के रूप में अंतिम संस्कार कर दिया गया था.

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