Shashi Tharoor: कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने 25 जून 1975 को लगी इमरजेंसी पर सवाल उठाए हैं. साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि कई बाद अनुशासन और व्यवस्था के लिए उठाए गए कदम ऐसी क्रूरता में बदल जाते हैं, जिन्हें किसी भी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता. ऐसे में देश में लागू किए गए आपातकाल को सिर्फ भारतीय इतिहास के ‘काले अध्याय’ के रूप में याद करके नहीं, बल्कि इससे सबक लेना चाहिए.
नसबंदी अभियान मनमाना फैसला: थरूर
बता दें कि 50 साल पहले 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई थी, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रही. उस वक्त इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान को थरूर ने ‘क्रूरता का उदाहरण’ बताया.
उन्होंने मलयालम भाषा के अखबार ‘दीपिका’ में गुरुवार को प्रकाशित अपने लेख में लिखा कि “गरीब ग्रामीण इलाकों में लक्ष्य पूरा करने के लिए हिंसा और दबाव का सहारा लिया गया. इस दौरान नई दिल्ली जैसे शहरों में झुग्गियां को तोड़ा गया, हजारों लोग बेघर हुए, लेकिन उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया.”
लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेने की सलाह
थरूर के अनुसार, यह अभियान मनमाना और क्रूर फैसला था, जिसने लोगों के जीवन पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डाला. इसके साथ ही अपने आर्टिकल में लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेने की बात पर जोर देते हुए थरूर ने इसे एक ‘बहुमूल्य विरासत’ बताया, जिसे लगातार संरक्षित करना आवश्यक है. इस दौरान उन्होंने चेतावनी भी दी कि सत्ता को केंद्रित करने, असहमति को दबाने और संविधान को दरकिनार करने का असंतोष कई रूपों में फिर सामने आ सकता है.
इमरजेंसी एक चेतावनी
कांग्रेस सांसद ने कहा कि अक्सर ऐसे कार्यों को देशहित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है. इस अर्थ में, इमरजेंसी एक चेतावनी के रूप में खड़ी है. वहीं, सारी बातों के निष्कर्ष में उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के संरक्षकों को हमेशा सतर्क रहना होगा, जिससे ऐसी स्थितियां दोबारा पैदा न हों.
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