जानिए चंद्रशेखर के ‘आजाद’ प्रण की कहानी, बमतुल बुखारा के दम पर रहे आजाद

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Chandrashekhar Azad Park: चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अराजीपुर जिले के भाबरा में हुआ था. उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था. चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही आजादी के आंदोलन में कूद पड़े थे. उनकी रग-रग में देशभक्ति का जज्बा भरा हुआ था. 1921 में उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था.

गिरफ्तारी के बाद चंद्रशेखर आजाद को जज के सामने पेश किया गया. जज के पूछने पर उन्होंने अपना नाम आजाद और पिता का नाम स्वतंत्रता और घर जेल बताया. यह बात सुनकर जज नाराज हो गए और उन्होंने चंद्रशेखर आजाद को 15 कोड़ों की सजा सुना दी. इसके बाद यही से उनका नाम आजाद पड़ गया. इसी दिन चंद्रशेखर आजाद ने प्रण किया कि वह अब हमेशा आजाद रहेंगे और कभी भी अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आएंगे.

चंद्रशेखर आजाद और उनके साथ कई क्रांतिकारियों, ठाकुर रोशन सिंह, राम प्रसाद बिस्मिला, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्रनाथ लहिड़ी आदि ने 9 अगस्त 1925 को आलमनगर और काकोरी के बीच ट्रेन से जा रहे अंग्रेजी खजाने को लूट लिया था और चंद्रशेखर आजाद ने लगातार अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, जिसके कारण अंग्रेजों की नींद हराम हो गई थी और अंग्रेजों ने भी चंद्रशेखर आजाद को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी.
27 फरवरी 1931 की दोपहर में चंद्रशेखर आजाद इलाहाबाद में अल्फ्रेड पार्क में साइकिल को जामुन के पेड़ के सहारे खड़ी कर आराम फरमा रहे थे. चंद्रशेखर आजाद उस समय इस बात से बिल्कुल बेखबर थे कि मुखबिर ने उनके यहां होने की सूचना अंग्रेज पुलिस को दे दी है.

जब चंद्रशेखर आजाद के अल्फ्रेंड पार्क में मौजूद होने की सूचना तत्कालीन एस. पी. सर नाट बाबर जान को हुई तो नगर कोतवाली से सटे अपने कार्यालय से पुलिस बल के साथ निकल पड़े और कर्नलगंज थाने की पुलिस को अल्फ्रेड पार्क की घेराबंदी करने का आदेश दे दिया.

चंद्रशेखर आजाद को जब अपने आसपास कुछ हलचल लगी, तब उन्होंने पाया कि वह चारों तरफ से घिर चुके है. सबसे पहले एस. पी. सर नाट बाबर जान ने चंद्रशेखर आजाद पर गोली चलाई और आजाद ने भी जवाब में अपनी पिस्टल से सर नाट बाबर जान पर निशाना लगाकर गोली चला दी. गोली सर नाट की उंगलियों को छूती हुई निकल गई और सर नाट बाबर जान की पिस्तौल हाथ से छूट गई.

इसके बाद आजाद ने अंग्रेजों का जमकर सामना किया, लेकिन अंत में आजाद के पिस्टल में एक ही गोली बची और इस बहादुर कांतिक्रारी को अपना वह प्रण याद था कि वह आजाद है और हमेशा आजाद रहेंगे और उन्होंने खुद अपनी पिस्लौल से अपनी कनपटी पर खुद को गोली मारकर अपने प्राणों को भारत मां के लिए न्यौछावर कर दिया. इस वीर क्रांतिकारी की यादें आज भी प्रयागराज के अल्फ्रेंड पार्क (अब चंद्रशेखर पार्क) में जिंदा है. चंद्रशेखर आजाद की पिस्टल काफी समय तक इलाहाबाद संग्राहलय में रही और अब लखनऊ के संग्राहलय में रखी हुई है.

चंद्रशेखर आजाद अपनी पिस्टल को प्यार से बमतुल बुखारा कहते थे. यह पिस्टल कोल्ट कंपनी की बनी हुई है. चंद्रशेखर आजाद की शहादत के बाद शहादत स्थल पर लगे जामुन के पेड़ के पास काफी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने आने लगे, जिससे अंग्रेजों ने आजाद की निशानी को मिटाने के लिए जामुन के पेड़ को कटवा दिया, लेकिन आजादी के बाद यहां लोगों ने एक दूसरा जामुन का पेड़ लगा दिया और आज यहां शहीद चंद्रशेखर आजाद की एक बड़ी प्रतिमा हैं, जिसको नमन करने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

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