“सुप्रीम कोर्ट ने खोए दो स्तंभ” सीजेआई बीआर गवई ने सीनियर एडवोकेट जगदीश चंद्र गुप्ता और डॉ. शरत जावली के योगदान को किया याद

Shivam
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CJI Gavai Jagdish Gupta Tribute: सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई बीआर गवई ने मंगलवार को एक ऐसी शख्सियत को याद किया, जिसने न्यायपालिका और वकालत दोनों मंचों पर अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आयोजित फुल कोर्ट रेफरेंस के दौरान सीजेआई बीआर गवई (CJI BR Gavai) ने गहरे सम्मान के साथ सीनियर एडवोकेट जगदीश चंद्र गुप्ता और डॉ. शरत एस जावली के जीवन और योगदान को याद किया.

उन्होंने कहा, दोनों हस्तियों ने कानून को सख्ती की जगह समझदारी और संवेदना की नजर से देखा और विधि के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. CJI गवई ने अपने संबोधन में कहा कि जगदीश चंद्र गुप्ता न्यायपालिका और वकालत दोनों क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाले व्यक्तित्व थे. उनका जन्म 27 अगस्त 1940 को मथुरा में हुआ. 1961 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1962 में वकालत शुरू की. बाद में 1977 में उन्होंने उच्च न्यायिक सेवा जॉइन की और कानपुर, एटा, गाजियाबाद, सुल्तानपुर और देहरादून में न्यायिक पदों पर कार्य किया.

500 से अधिक फैसलों से जुड़े रहे

1996 में वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए और 2002 तक सेवाएं दीं. अपने कार्यकाल के दौरान वे 500 से अधिक फैसलों से जुड़े रहे. सीजेआई ने कहा कि 156(3) सीआरपीसी पर उनके फैसले को अदालतों में आज भी संदर्भ के रूप में उद्धृत किया जाता है. सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने सीनियर एडवोकेट के रूप में सुप्रीम कोर्ट और उत्तराखंड हाई कोर्ट में प्रैक्टिस जारी रखी. सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि गुप्ता सादगी, ईमानदारी और संतुलित दृष्टि के प्रतीक थे. उनके परिवार के सदस्यों ने कार्यक्रम में वर्चुअल रूप से भाग लिया.

डॉ. शरत एस. जावली अर्पित को भी अर्पित की श्रद्धांजलि

सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. शरत एस. जावली को भी श्रद्धांजलि अर्पित की. उनका जन्म 16 सितंबर 1939 को पुणे में हुआ और वे कर्नाटक के प्रतिष्ठित विधि परिवार से थे. उन्होंने 1964 में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की और संवैधानिक एवं सार्वजनिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

विभिन्न मामलों में महत्वपूर्ण रूप से रहे शामिल

उन्होंने फाली एस. नरीमन और अनिल बी दिवान जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ कृष्णा, कावेरी और महादयी नदी विवादों में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व किया. इसके अलावा वे बेलगावी सीमा विवाद और राजीव गांधी हत्या मामले की जांच कर रहे जैन आयोग में भी कर्नाटक की ओर से अधिवक्ता रहे.

शिक्षा संस्थानों से रहा गहरा संबंध

कानून के साथ-साथ शिक्षा संस्थानों से भी उनका गहरा संबंध रहा. उन्होंने कर्नाटक यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ धारवाड़, NLSIU बेंगलुरु और मेयो कॉलेज अजमेर में महत्वपूर्ण योगदान दिया. 1999 में उन्होंने पावटे फाउंडेशन और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में पावटे फेलोशिप की स्थापना में भूमिका निभाई. CJI ने कहा कि दोनों की विरासत आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देगी. कार्यक्रम के अंत में CJI गवई ने कहा कि दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपने-अपने क्षेत्र में ऐसा योगदान दिया है जिसकी छाप लंबे समय तक बनी रहेगी. उन्होंने दोनों परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि बार और बेंच ने दो महत्वपूर्ण स्तंभ खो दिए हैं.

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